हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के शहर रुड़की से करीब 20 किलोमीटर दूर चुड़ियाला गांव में स्थित चूड़ामणि देवी के मंदिर की। यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। मंदिर के पुजारी पंडित अनिरुद्ध बताते हैं कि माता के चरणों में लकड़ी का बना लोकड़ा रखा जाता है। पुत्र रत्न की चाह रखने वाले दंपति मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं और चुपके से इस लोकड़े को चोरी कर लेते हैं। लोकड़े को चोरी करने के बाद दंपति अपने घर ले जाते हैं और जब उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है तो लोकड़े को वापस मंदिर में रखने के लिए आते हैं।
एक बार ही होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति
मंदिर के ही दूसरे पुजारी आशीष काैशिक बताते हैं कि शक्तिपीठ को जो वरदान है वह लड़का और लड़की में भेद नहीं करता लेकिन वंश चलाने के लिए अगर किसी दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति चाहिए तो वह वरदान शक्तिपीठ से प्राप्त होता है। एक दंपति को एक बार ही मंदिर से पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। यहां वहीं दंपति आते हैं जिन्हें पुत्र नहीं होते और उन्हें एक पुत्र की इच्छा होती है। एक से अधिक पुत्र वालों की मनोकामना मां के दरबार में पूर्ण नहीं होती।
आइए जानते हैं कैसा होता है लोकड़ा
आपके मन में यह सवाल जरूर उठा होगा कि आखिर यह लोकड़ा होता क्या है। दरअसल लोकड़ा लकड़ी के एक खिलौने जैसा होता है। यह आपको किसी भी बढ़ई या लाैहार के पास आसानी से मिल जाएगा। यह लोकड़ा पुत्र का प्रतीक होता है। इसका आकार बच्चों के छोटे खिलौनों की तरह ही होता है और इसी लोकड़े को शक्तिपीठ में मां के चरणों से चोरी करना होता है।
जून और जुलाई माह में पहुंचते हैं सर्वाधिक श्रद्धालु
आषाढ़ माह यानी जून और जुलाई माह में चुड़ियाला स्थित मां के शक्तिपीठ पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है। इसका कारण यह है कि जिन दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है वह जून और जुलाई माह में ही मंदिर में आते हैं और भंडारा करते हैं। यही कारण है कि इन दिनों मंदिर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और हर रोज यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। गांव वाले भी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत करते हैं और श्रद्धालु यहां हर दिन भंडारा करते हैं।
जानिए मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास सदियाें पुराना है। गांव के लोगों की से मिली जानकारी के अनुसार चुड़ियाला स्थित माता चूड़ामणि के इस मंदिर की स्थापना 1662 में हुई थी। मंदिर में आज भी इसके सबूत है। यहां सन और संवत् लिखा हुआ है। बताया जाता है कि 1805 में रुड़की के पास स्थित लंढाैरा रियासत के राजा अंग्रेजी शासन काल में चुड़ियाला गांव से अपनी सेना के साथ जा रहे थे। इसी दौरान उन्हें माता का चूड़ामणि पिंडी के समक्ष घुटनों के बल बैठकर माता को प्रणाम किया और पुत्र रत्न की इच्छा जताई। जब राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने इस शक्तिपीठ मंदिर का निर्माण कराया और तभी से यह परंपरा चली आ रही है जिस दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं होती वह माता के इस शक्तिपीठ पर आकर लोकड़ा चोरी करते हैं और माता से पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान मांगते हैं।