दो जिले की पुलिस को थी जिस बदमाश की तलाश, वो एनकाउंटर के बाद हुआ गिरफ्तार
पंडित कन्हैया लाल मिश्र प्रभारकर का जन्म 29 मई 1906 में देवबंद में हुआ था। इनके पिताजी पंडित रमादत्त शर्मा पंडिताई काम करते थे। इनकी माताजाी मिश्री देवी गृहणी थी। पंडित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने अपने साहित्य के बल पर विश्व स्तर पर पहचान बनाई। खुर्जा के संस्कृत विद्यालय में मध्यमा की पढ़ाई उन्हें बीच में ही छोड़नी पड़ गई थी। 1920 में वह स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े और 1930 से 42 तक कई आंदोलनों में जेल भी गए। पंडित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर 1929 में बापू यानी माेहनदास कर्मचंद गांधी जी को अपनी जन्मभूमि देवबंद लेकर आए थे। उन्हाेंने सहारनपुर काे भी विश्वपटल पर पहचान दिलाई है। अपने साहित्य से उन्हाेंने दुनियाभर को यह संदेश दिया है कि कर्म ही साधना की सबसे बड़ी पूंजी है और कर्म के बल पर ही प्रतिभा का विकास किया जा सकता है।रिटायर्ड कर्नल से कार लूटने वाले बदमाश और पुलिस का हुआ आमना-सामना, दिखा खौफनाक मंजर
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने जिंदगी मुस्कुराई, जिंदगी लहराई, बाजे पायलियां के घुंघरू, महके आंगन चहके द्वार, आकाश के तारें धरती के फूल, माटी हो गई सोना, जियो तो ऐसे जियो, दीप जले शंख बजे, तपती पगडंडियों पर पदयात्रा, सतह से तह में, अनुशासन की राह में, यह गाथा वीर जवाहर की, एक मामूली पत्थर, दूध का तालाब, भूले हुए चेहरे आदि विख्यात साहित्य लिखे। इनके सभी साहित्यों काे प्रकाशन देश के जाने-माने प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ ने किया। इनकी अपनी अलग शैली थी और यही कारण है कि पंडित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर को शैलियों के शैलीकार भी कहा जाता है।पंडित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और इसीलिए उन्हें मेरठ विश्वविद्यालय की ओर से डी-लिट की मानद उपाधि भी दी गई थी। भारतेंदु पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी व पराड़कर पुरस्कार, महाराष्ट्र भारती पुरस्कार, सहित दो दर्जन से अधिक सम्मान उन्हें मिले हैं और 1990 में उन्हें पद्मश्री भी मिला।