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सहारनपुर

बाबरी मस्जिद के बदले 5 एकड़ जमीन पर मुसलमानों के इस बड़े संगठन ने अपने फैसले से सरकार के उड़ाए होश

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की सुन्नी सेंट्र वक्फ बोर्ड से की अपील
जमीयत प्रमुख ने वक्फ बोर्ड से जमीन नहीं लेने को कहा

सहारनपुरNov 14, 2019 / 09:29 pm

Iftekhar

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देवबंद. जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) के प्रमुख अरशद मदनी (Jamiat Ulema-E-Hind Chief Maulana Syed Arshad Madani) ने बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) के बदले सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की ओर से दिए गए 5 एकड़ जमीन को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड (Uttar Pradesh Sunni Waqf Board) ने नहीं लेने की अपील की है। मौलाना अरशद मदनी गुरुवार को दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (ए) के कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए ये बातें कही। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह जमीन का मामला नहीं था, बल्कि मुस्लिम उम्मा 70 साल से अपने अधिकारों के लिए लड़ रही थी।

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मौलाना मदनी ने बताया कि गुरुवार को जमीयत की आम सभा में यह फैसला लिया जाएगा कि बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए या नहीं, इस पर फैसला किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए जमीयत के कोर ग्रुप के देशभर के सभी 21 सदस्य को बुलाया गया है। जमीयत बैठक में अपने सभी सदस्यों और सुप्रीम कोर्ट के वकील की राय जानने के बाद भी आगे की रणनीति तैयार करेगी।

उन्होंने कहा कि यह मुद्दा न केवल जमात से संबंधित है, बल्कि यह पूरे मुस्लिम समुदाय से संबंधित है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय समझ से परे है। हम यह नहीं समझते कि ऐसा निर्णय क्यों किया गया और न केवल हम, बल्कि देश के कई विशेषज्ञ, वकील और न्यायाधीश भी इस फैसले को नहीं समझ पा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट बेंच के जजों ने माना है कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को गिराकर नहीं बनाई गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद की शहादत अवैध थी और ऐसा करने वालों ने अपराध किया है। लेकिन फिर भी जमीन हिंदुओं को सौंप दी गई। हमें समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा फैसला क्यों किया गया है।

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हालांकि, उन्होंने इस मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने से साफ इनकार किया। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भारत की सबसे ऊंची अदालत है। हम इसके अलावा किसी और अदालत का रुख नहीं करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि यह मामला सिर्फ मस्जिद का मामला नहीं था, बल्कि मुसलमानों के अधिकारों का मामला था। एक मस्जिद हमेशा एक मस्जिद होती है, चाहे कोई उसमें नमाज पढ़े या नहीं।

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गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर को बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के स्वामित्व वाले भूमि मामले में अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन हिंदू देवता राम लला को सौंपने का फैसला सुनाया। राम लला मामले के तीनों पक्षों में से एक थे। पांच न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराए।

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