देवबंद के मोहल्ला बड़जियाउलहक निवासी एक व्यक्ति ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग के मुफ्तियों से सवाल पूछा था कि एक शख्स 15 हजार रुपये कीमत के आभूषणों पर व्यापारी से 15 हजार रुपये का कर्ज मांगता है। व्यापारी उसके बदले उसे 12 हजार रुपये 10 प्रतिशत सूद की शर्त के साथ देने की बात कहता है। फिर वो उन आभूषणों को जांच परख करके वजन करने के बाद तीन फार्म तैयार करता है। जिसमें हर एक फार्म पर जेवर का वजन, उसकी कीमत और तिथि दर्ज होती है। सूद चढ़ने की शुरुआत कर्ज देने के बाद एक माह पूरा होने पर होती है। शरीयत में इसके लिए क्या हुक्म है। साथ ही अगर व्यापारी कहने लगे कि जो रकम ज्यादा ले रहा तो वो कागजात और जेवरात की हिफाजत का खर्चा है। इसके बारे में शरीयत में क्या हुक्म है। इसके जवाब में मुफ्तियों की खंडपीठ ने कहा कि ये सूदी मामला है, लिहाजा जायज नहीं है। अगर व्यापारी का मकसद रकम और आभूषणों की हिफाजत के लिए रकम लेना होता तो दिए गए ऋण के हिसाब से ज्यादा रकम वसूल न करता। बल्कि एक कागज की हिफाजत के लिए वो एक तयशुदा रकम लेता। चाहे वो मामला 10 हजार का हो या 1 लाख का। ऋण के हिसाब से ज्यादा रकम लेने से यह बात साफ हो जाती है कि उसका मकसद सूद लेना ही है।
वहीं, उक्त व्यक्ति ने दूसरे सवाल में एक संस्था का नाम लेकर मुफ्तियों से यही सवाल पूछा तो जवाब में कहा गया कि वह कौन सी संस्था है, इसके असल जिम्मेदार कौन हैं ये सवाल असल जिम्मेदार के लिए है। ये उनके उनके हस्ताक्षर से आना चाहिए। इसलिए जवाब नहीं दिया जा सकता।