जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है। कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है। इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं। इससे ही कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में पता चला है। अब इन मशीनों की सहायता से सागर में ही वायरस की जांच हो सकेगी। असल में, मानव कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ होता है जिसे डीएनए, आरएनए कहते हैं। इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है। वहीं स्ट्रेन को वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक वैरिएंट कहते हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग में हाल ही में स्थापित की गई मशीनों का प्रशिक्षण थर्मोफिशर साइंटिफिक के विषेशज्ञ डॉ. विशाल धर, डॉ. नवीन एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अरूप आर्चाय दे रहे हैं। रंगनाथन भवन में उद्धाटन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि फार्मेसी विभाग के सेवानिवृत्त प्रो. वैज्ञानिक प्रो. एसपी व्यास ने यह कार्यशाला कृषि एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। जिससे स्वास्थ्य के क्षेत्र में होने वाली बीमारियों के कारणों को आसानी से समझा जा सकता है। साथ ही कृषि को प्रभावित करने वाले विभिन्न सूक्ष्म जीवों के सम्पूर्ण जिनोम सिक्वेंस का पता लगा कर उनसे लडऩे के तरीकों को खोजा जा सकता है।
कार्यशाला के संयोजक डॉ. सीपी उपाध्याय ने बताया सभी ऑफलाइन एवं ऑनलाइन विद्यार्थियों को एनजीएस और क्यूआरटीपीसीआर के बारे में जानकारी और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कार्यशाला में आठ राज्यों से ऑफलाइन एवं ऑनलाइन माध्यम से प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। आयोजक सचिव डॉ आरके कोइरी हैं।