अब ए फॉर एप्पल नहीं, ए फॉर ऑटोमोबाइल्स होगा- डॉ. बरेठिया
तकनीकी नवाचार और कौशल विकास शिक्षा के नए आयाम विषय पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का हुआ आयोजन
वक्ताओं ने संगोष्ठी को किया संबोधित
बीना. शासकीय कन्या महाविद्यालय में शुक्रवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी तकनीकी नवाचार और कौशल विकास शिक्षा के नए आयाम विषय पर आयोजित की गई।
संगोष्ठी का शुभारंभ अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा डॉ. रेखा बरेठिया, जनभागीदारी समिति अध्यक्ष सोनाली राय, विषय विशेषज्ञ प्रो. विनय दुबे, प्राचार्य डॉ. चंदा रत्नाकर ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। कार्यक्रम तीन सत्रों में संचालित हुआ। प्राचार्य ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। जनभागीदारी समिति अध्यक्ष ने कहा कि रचनात्मकता ज्यादा जरूरी है और कुछ नया सीखना है व उसका उपयोग करना है। प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहीं डॉ. बरेठिया ने कहा कि हम स्वयं उद्यमी बनें, अपने कौशल से स्वयं और सबको रोजगार दें, इसके लिए वर्णमाला को पढऩे का तरीका बदलना होगा। अब ए फॉर एप्पल नहीं, ए फॉर ऑटोमोबाइल्स होगा। मुख्य वक्ता ने कहा कि हम अपना विकास कौशल विकास से ही कर सकते हैं। आज हमारा जीवन क्यूआर कोड तकनीकी पर आधारित है। उन्होंने तकनीकी नवाचार के अंतर्गत एआइ और ड्रोन टेक्नोलॉजी की चर्चा की। तकनीकी सत्र के विषय विशेषज्ञ डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर से आए डॉ. केके राव ने कहा कि हमें तकनीकी के वरदान पक्ष को देखना है और कौशल विकास कर अपनी पहचान देश-विदेश तक पहुंचाना है। इंक मीडिया एवं मास कम्युनिकेशन संस्थान से आए मुख्य वक्ता डॉ. आशीष द्विवेदी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का कौशल अलग-अलग है। हम अपनी योग्यता को पहचाने और आत्मनिर्भरता की मिसाल बनाएं। स्वामी विवेकानंद करियर मार्गदर्शन योजना के निदेशक डॉ. आदित्य लुणावतपूर्व ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कौशल आधारित अधिगम और रोजगार परक है। विषय विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश्वर उपाध्याय ने कहा कि हमारे आसपास ही कौशल विकास के अनेक क्षेत्र फैले हुए हैं। आज हम अपने कौशल की पहचान तकनीकी संसाधनों से विश्वव्यापी बना सकते हैं। प्रथम सत्र का संचालन आयोजन सचिव डॉ. रश्मि जैन ने, द्वितीय सत्र का डॉ. रश्मि द्विवेदी, तृतीय सत्र का संचालन डॉ. दीपमाला सिंह ने किया। इस अवसर पर शोध पत्रों का वाचन ज्योति राठौर, ब्रज वि_ल गौड, शुभम राठौर, सुरभि दांगी आदि शोधार्थियों ने किया गया। शोध पत्रों की समीक्षा डॉ. उमा लवानिया ने की। आभार डॉ. हरिशंकर सेन ने व्यक्त किया।
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