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महात्मा गांधी ने भगवान सत्यनारायण की कराई थी कथा

देवरीकला में राष्ट्रपिता की स्मृति में बना है मंदिर देवरी कला. बुधवार को गांधी जयंती पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जिसको लेकर तैयारियां कर ली गई हैं। शहरवासियों ने बताया कि नगर में राष्ट्रपिता महात्मागांधी का 1 दिसंबर सन 1933 को महात्मा गांधी का आगमन हुआ था। उन्होंने मालगुजार परिवार के मुखिया लाला भवानी […]

सागरOct 02, 2024 / 05:47 pm

हामिद खान

देवरीकला में राष्ट्रपिता की स्मृति में बना है मंदिर

देवरीकला में राष्ट्रपिता की स्मृति में बना है मंदिर

देवरीकला में राष्ट्रपिता की स्मृति में बना है मंदिर

देवरी कला. बुधवार को गांधी जयंती पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जिसको लेकर तैयारियां कर ली गई हैं।

शहरवासियों ने बताया कि नगर में राष्ट्रपिता महात्मागांधी का 1 दिसंबर सन 1933 को महात्मा गांधी का आगमन हुआ था। उन्होंने मालगुजार परिवार के मुखिया लाला भवानी प्रसाद के निवास पर रात्रि विश्राम किया एवं सुबह राधा कृष्ण दरबार में दर्शन के लिए मंदिर में पहुंचे। इस दौरान वह इस मंदिर में अपने साथ हरिजनों को भी ले गए। उन्होंने नगर के लाला जू नाम से प्रसिद्ध मंदिर में 2 दिसंबर सन 1933 में हरिजनों को प्रवेश कराया था। धार्मिक, राजनैतिक ऐतिहासिक और साहित्यिक धरोहरों को अपने आप में समेटे यह प्राचीन मंदिर देवरी नगर के बीचोबीच स्थित है।
इसके बाद मंदिर से कुछ दूरी पर गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गरीब दास रजक के निवास के सामने एक मैदान में भगवान सत्यनारायण की कथा कराई। कथा में महत्वपूर्ण बात यह थी की कथा के उपरांत प्रसाद का वितरण हरिजनों के हाथों से कराया था। उसके बाद लाला भवानी प्रसाद ने 1935 में उसी स्थान पर गांधी जी की स्मृति में एक मंदिर का निर्माण कराया जो वर्तमान में गांधी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
राजनैतिक महत्व के लिए देवरी के मालगुजार परिवार का शुरू से ही देश की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सुधीर श्रीवास्तव ने बताया कि हमारे दादा जी लाला भवानी प्रसाद ने सन 1905 में देवरी में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की और लालाजू घाट पर सुखचैन नदी में शक्कर फेंकी और विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, इसके कारण उनके ऊपर अंग्रेजी शासन काल में देश द्रोह का मुकदमा चला। उस वक्त अविभाजित मध्यप्रदेश में नागपुर शामिल था और इस मामले की पेशी के लिए मेरे दादा घोड़ा तांगा से नागपुर जाते थे। उनके ऊपर उस 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया था। उनके दोनों पुत्रों लक्ष्मण प्रसाद एवं वासुदेव प्रसाद पर ब्रिटिश शासन काल में सरकारी नौकरी पर बंदिश लगा दी गई थी।
रहली के पास अनंतपुरा में 15 घंटे रुके थे बापू

1 दिसम्बर 1933 को बापू दोपहर 3.30 बजे अनंतपुरा ग्राम पहुचे थे। देवरी से अनंतपुरा आते समय बापू का पूरे रास्ते में स्वागत किया गया था। गांव में पहुचकर सवसे पहले बापू जेठालाल से मिले एवं खादी आश्रम का निरीक्षण किया। खादी आश्रम से बापू इतनें प्रभावित हुए कि उन्होंने अनंतपुरा ग्राम के बारे में सम्पादकीय लिखी। गांव के मध्य बने चबूतरे से सभा को संबोधित कर छुआछूत मिटाने की अपील की एवं चरखे के महत्व को समझाते हुए कहा था कि चरख देश के करोड़ो भाईयों का घी, दूध और रोटी है। सायंकालीन प्रार्थना सभा के बाद बापू ने झोपडीयों में जाकर लोगों के हाल जाने। रात्रि विश्राम के बाद बापू दूसरे दिन प्रात: कालीन प्रार्थना सभा के बाद सुबह 6.30 बजे अनंतपुरा ग्राम से दमोह को रवाना हुए थे। यात्रा में उनके साथ स्व. राजेन्द्र ङ्क्षसह एव स्व पं.रविशंकर शुक्ल साथ थे।
स्वदेशी वस्त्र प्रेम से प्रभावित होकर पहुंचे थे अनंतपुरा

चरखे की चाहत व अनंतपुरा गांव के युवक जेठालाल भाई के स्वदेशी वस्त्र प्रेम से प्रभावित होकर राष्ट्र पिता महात्मा गांधी 88 साल पहले 1 दिसम्बर 1933 को रहली के ग्राम अनंतपुरा आए थे। बापू ने अनंतपुरा गांव में रात्रि विश्राम कर पूरे 15 घंटे बिताए थे। यात्रा के बाद से रहली के समीपस्थ ग्राम अनंतपुरा गांधी ग्राम के रुप जाना जाने लगा है। तत्कालीन 200 घरों के छोटे से ग्राम अनंतपुरा में अंग्रेजी शासन काल में जेठालाल भाई नामक युवक द्वारा खादी आश्रम का संचालन कर गांव के लोगों को रोजगार मुहैया करानेे के साथ स्वेदेशी वस्त्रों एवं स्वेदेशी विचार धारा का प्रचार किया जा रहा था। जेठालाल पत्र व्यवहार के माध्यम से गांधीजी से मार्ग दर्शन प्राप्त करते थे। जेठालाल की राष्ट्रभक्ति एवं स्वदेशी प्रेम से प्रभावित होकर गांधी जी अनंतपुरा जेठालाल का हौसला बढ़ाने के लिए आए थे।

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