रावण दहन की प्रथा का करते हैं विरोध हरीश नागदेव का मानना है कि हर साल दशहरा पर रावण दहन की प्रथा है। लेकिन रावण जैसा प्रकांड विद्वान कोई दूसरा नहीं हो सकता। वह एक ब्राह्मण होने के साथ उन्हें चारों वेदों का ज्ञान था। उन्होंने राक्षस कुल को तारने के लिए ही भगवान का विरोध किया था। जिससे मर्यादा पुरुषोत्तम के माध्यम से उनका कुल तर गया। हरीश का मानना है कि उनकी तरह लोग रावण का सम्मान करें और रावण दहन पर होने वाली प्रथा को बंद करें। प्रदेश में सागर से होती है रावण दहन की शुरूआत, यहां सप्तमी के दिन मना विजयादशमी का पर्व
विजयादशमी के पर्व पर रावण दहन का आयोजन देशभर में किया जाता है, लेकिन मप्र के सागर के सदर क्षेत्र में नवरात्रि की सप्तमी पर रावण दहन किया जाता है। सदर के कजलीवन मैदान में बुधवार को भगवान श्रीराम ने रावण की नाभि पर तीन मारकर वध दिया। रावण धू-धू करके जल गया। रावण के पुतले पर तीन लगते ही भव्य आतिशबाजी हुईं। रावण सदर में सप्तमी पर ही विजयादशमी मनाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यहां 1947 में देश आजाद होने के वर्ष 1950 से रावण दहन का कार्यक्रम सप्तमी पर किया जा रहा है। वर्ष-2002 से 2016 तक के बीच में रावण दहन का कार्यक्रम बंद रहा। वर्ष 2017 से हिंदू महा संगठन रावण दहन का आयोजन लगातार करा रहा है।