बरसात में बढ़े कुत्तों के हमले, इधर सरकारी अस्पतालों में 6 माह से इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन नहीं
बरसात के ब्रीडिंग सीजन में कुत्तों के हमले बढ़ गए हैं। रोज 30 से 40 मरीज घायल होकर सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां मरीजों की जान बचाने वाले इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन ही नहीं है।
एआरवी इंजेक्शन से ही चलाया जा रहा काम, कुत्ते के काटने से खून निकला तो 15 से 20 हजार रुपए का खर्च निश्चित सागर. बरसात के ब्रीडिंग सीजन में कुत्तों के हमले बढ़ गए हैं। रोज 30 से 40 मरीज घायल होकर सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां मरीजों की जान बचाने वाले इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन ही नहीं है। पिछले 6 माह से इस महंगे इंजेक्शन की सप्लाई नहीं हो पा रही है। इसका असर उन मरीजों को हा रहा है, जो गंभीर अवस्था में खून से लथपथ होकर अस्पताल पहुंचते हैं। ऐसी स्थिति में 5 से 7 हजार रुपए का इम्युनोग्लोबुलिन नाम का यह इंजेक्शन अधिकांश मरीजों के लिए जरूरी होता है। इससे शरीर में रेबीज के प्रति अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है। यदि रेबीज हो गया तो मरीज की जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
80 प्रतिशत केसों में आवश्यकता
जिला अस्पताल में हर दिन 25 से 30 तो मेडिकल कॉलेज में 10 से 15 मरीज डॉग बाइट के आ रहे हैं। इसमें से 80 प्रतिशत केस में मरीज लहूलुहान हालत में पहुंचते हैं। यह वह स्थिति है जब मरीज को तत्काल इम्युनिटी के लिए एआरवी (एंटी रेबीज वैक्सीन) के साथ इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता होती है।
तत्काल इम्युनिटी बढ़ा देता इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन
एआरवी रेबीज के प्रति इम्युनिटी 7 दिन में बनाता है, लेकिन यदि कुत्ते ने दांत गड़ा दिए और खून निकल आया तो रेबीज इसके पहले ही फैल सकता है। इसलिए इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन तत्काल इम्युनिटी बढ़ा देता है और रेबीज को फैलने से रोकता है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में यह इंजेक्शन लंबे समय से सप्लाई में नहीं आया वहीं बाहर से लेने पर यह काफी महंगा आता है।
रेबीज हुआ तो मौत पक्की
कुत्ता के काटने पर रेबीज का इलाज सिर्फ इतना है कि रेबीज होने से पहले ही शरीर में इसके प्रति इम्युनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) विकसित कर दी जाए। डॉक्टर्स की मानें तो रेबीज होने के बाद मरीज की मौत निश्चित हो जाती है।
कब कौन सा इंजेक्शन लगना चाहिए
डॉक्टर्स की मानें तो जानवर के सिर्फ चाटने से भी रेबीज का संक्रमण हो सकता है, इसे डॉक्टरी भाषा में टाइप 1 कहा जाता है और एआरवी से इसका उपचार हो जाता है। इसी तरह यदि जानवर ने स्किन में खरोंच मार दी है तो उसे टाइप 2 में एआरवी इंजेक्शन दिए जाते हैं। लेकिन यदि कुत्ता या अन्य जानवर ने दांत गढ़ा दिए हैं और खून निकला है तो ऐसे केस का टाइप 3 में रखकर एआरवी के साथ इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन दिया जाता है।
28 दिनों तक लगते हैं 5 इंजेक्शन
प्रत्येक केस में 28 दिनों तक मरीज को 5 इंजेक्शन लगाए जाते हैं। सामान्यत: 300 रुपए के एआरवी इंजेक्शन सरकारी अस्पतालों में मौजूद होते हैं, लेकिन 5-7 हजार रुपए का इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन बाहर से ही खरीदना पड़ रहा है। इसके डोज उम्र व वजन के वयस्कों में 2 डोज लगते हैं, इसलिए खर्चा 15-20 हजार रुपए तक पहुंच जाता है।
एआरवी इंजेक्शन लगाने के नियम
24 घंटे के अंदर पहला
3 दिन में दूसरा
7 दिन में तीसरा
14 दिन में चौथा
28 दिन में पांचवा
पागल कुत्ता और सियार जैसे जंगली जानवरों के काटने पर डॉक्टर्स इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन की सलाह देते हैं। यदि कुत्ते के काटने पर खून निकल आया है तब भी डॉक्टर्स सावधानी के तौर पर यह महंगा इंजेक्शन लिखते हैं। इंजेक्शन की सप्लाई के लिए पत्र लिखा गया है।
अभिषेक ठाकुर, आरएमओ जिला अस्पताल।
24 जुलाई को पागल कुत्ता ने पैर में काट लिया था। जिला अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर्स ने एक इंजेक्शन बाहर का लिखा लेकिन वह मेडिकल पर 7700 रुपए का बता रहे थे। बीएमसी में भी पूछा लेकिन यहां भी नहीं है।
सुदामा सेन, घायल मोकलपुर।
-बुधवार को मकरोनिया के बजरिया में बड़े भाई को कुत्ता ने काट लिया था। खून निकलने पर उसे महंगा इंजेक्शन खरीदकर लगवाए हैं। अभी एक इंजेक्शन और लगवाने के लिए डॉक्टर ने बोला है। 15 हजार रुपए का खर्च आ जाएगा।
मोती चढ़ार, घायल के परिजन।
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