ऐसा अद्भुत समय मेरी जिंदगी में भी आया, जब मेरी दोनों बेटियां इस दुनिया में आईं। फिर तो उनकी मुस्कराहट देखकर ही मेरे दिन की शुरुआत होने लगी। उनकी छोटी-छोटी शरारतें और तुतलाते हुए बोलना मन को गदगद करने वाला होने लगा। इनकी समझ जैसे बढ़ती गई, उनकी हर जिज्ञासा को पूरा करना भी मां का दायित्व होता है, उसे भी पूरा करने का अब तक प्रयास जारी है। चिकित्सीय पेशे की व्यस्तता के बीच बेटियों की मां से होने वाली हर अपेक्षा को अन्य मां की तरह पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। इन कार्यों से मन को आत्म संतुष्टि भी प्राप्त होती है।
कई बार ऐसा भी होता है जब काम की व्यस्तता की वजह से बेटियों को पर्याप्त समय दे पाना मुश्किल होता है। उस समय का प्रबंधन करना एक मां के नजरिए से चुनौतीपूर्ण हो जाता है। कोशिश रहती है कि पढ़ाई के साथ अपने संस्कार, रीति-रिवाज हर क्षेत्र से वह परिचित रहें।मां ही अपने बच्चे की प्रथम गुरु होती है, इसलिए गुरु का दायित्व बनता है कि वह अपने बच्चे का सर्वांगीण विकास करें। बदलते समय के साथ ही माताओं की चिंता भी बच्चों के प्रति बढ़ी है। एक चिकित्सक होने के नाते हर दिन अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं के साथ संवाद होता है। बच्चा जब गर्भ में होता है तो उस महिला के मन में मां बनने को लेकर तरह-तरह के उत्साह आते हैं। डाक्टर से हर सवाल करती हैं, खुद के स्वास्थ्य से ज्यादा आने वाले बच्चे की फिक्र उन्हें रहती है। गर्भ में जब बच्चा हो तो महिला को किस तरह के खान-पान का ध्यान रखना चाहिए, अच्छे संगीत सुनने और सकारात्मक बातों पर अधिक ध्यान देने संबंधी टिप्स भी उन्हें देने पड़ते हैं, ताकि जब वह मां बनें तो बच्चा तन-मन से पूरी तरह स्वस्थ रहे। कई बार ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं, जब खुद एक मां होने की वजह से भावनात्मक रूप से उस महिला के दर्द से मन जुड़ता है लेकिन डाक्टर को इन सबसे खुद को अलग करते हुए उसके स्वास्थ्य पर फोकस करना पड़ता है।
———– –स्वास्थ्य के प्रति मां को ऐसे सतर्क रहना चाहिए – गर्भावस्था में सात्विक और संतुलित भोजन में फल, दूध, हरी सब्जी आदि का सेवन करना चाहिए। चालव, आलू, मैदा, मीठा, कोल्ड ड्रिंक आदि से परहेज करना चाहिए।- अच्छा संगीत और अच्छी बातें सुनने से बच्चे के आचरण में सुधार होता है।
– चिकित्सक से परामर्श लेकर व्यायाम करना चाहिए।- जन्म के बाद से बच्चे को नियमित स्तनपान के साथ ही भरपूर दुलार देना चाहिए। – बच्चा जब बड़ा हो तो सौहार्दपूर्ण तरीके से रहने, बड़ों का सम्मान करने आदि की शिक्षा मां को देना चाहिए।- मां का दायित्व यह भी बनता है कि संतान को अपने साथ खाना बनाना भी सिखाए ताकि भविष्य में इसकी जरूरत पडऩे पर परेशान न होना पड़े।
– बच्चे को यह भी सिखाना चाहिए कि किसी विपरीत परिस्थिति में हताश होने के बजाए उससे उबरने का प्रयास करना चाहिए।——————–