टोंस हाइडल प्रोजेक्ट(टीएचपी) सिरमौर के नजदीक ही टोंस वाटर फाल है। यहां तक पहुंचने के लिए टीएचपी परिसर से ही सड़क बनानी है। बीते १५ मई को डीएफओ रीवा ने पत्र टीएचपी के अतिरिक्त मुख्य अभियंता को लिखा था। जिसमें टीएचपी परिसर से टोंस वाटर फाल तक सड़क बनाने की अनुमति मांगी थी। मामले में टीएचपी ने परिसर के भीतर तरह-तरह के पर्यटकों की उपस्थित के दौरान सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया है।
वन विभाग के अधिकारी प्रोजेक्ट तैयार करते समय टीएचपी प्रबंधन के संपर्क में किसी तरह से नहीं आए। चारों ओर वनभूमि होने की वजह से इन्हें किसी तरह की रुकावट की आशंका नहीं थी। जब तकनीकी पेंच उलझा तो मुख्यालय ने भी जवाब मांग लिया है। डीएफओ सहित कई अधिकारी महीने भर के भीतर कई बार दौरा कर चुके हैं। बताया जा रहा है कि पूर्व में समन्वय बनाकर कार्य किया जाता तो वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जा सकती थी।
रीवा जिले के टोंस वाटरफाल और पावन घिनौची धाम को मनोरंजन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए शासन ने 72 लाख रुपए की स्वीकृति दी है। इसमें टोंस वाटरफाल को 36.50 लाख और घिनौची धाम को 35.50 लाख रुपए का प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ है। 40 फीसदी राशि भी वन विभाग को आवंटित कर दी गई है। घिनौची धाम में तो कार्य चल रहा है लेकिन टोंस वाटरफाल में अब तक कार्य की शुरुआत ही नहीं हो पाई है।
यहां पर फेसिंग एवं रेलिंग के लिए 15 लाख, मुख्य गेट एक लाख, पैगोड़ा 4.50 लाख, पार्किंग स्थल दो लाख, पेयजल व्यवस्था चार लाख, प्रशाधन सुविधा पांच लाख, प्रकृति पथ एक लाख, सिटआउट दो लाख, पौधरोपण एवं अन्य में दो लाख रुपए खर्च करने का प्रावधान है।
इको टूरिज्म बोर्ड ने विंध्य क्षेत्र में सबसे अधिक निवेश करने की योजना बनाई थी। बोर्ड के सीइओ ने कई स्थानों का भ्रमण कर अधिकारियों से कार्ययोजना तैयार करने के लिए कहा था। पहले प्रोजेक्ट में ही बड़ी लापरवाही सामने आई है जिसके चलते अन्य जिन स्थानों के विकास के लिए राशि मिलनी थी उनकी राह मुश्किल हो सकती है। टोंस वाटर फाल मामले की जानकारी मिलने पर बोर्ड सीईओ ने नाराजगी भी अफसरों से जाहिर की है।