scriptक्या शरद पूर्णिमा की खीर में आ जाते हैं औषधीय गुण, जानें धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं | sharad purnima kheer ka mahatva Upay does kojagiri purnima kheer medicinal properties have religious scientific beliefs and fact chandroday time | Patrika News
धार्मिक तथ्य

क्या शरद पूर्णिमा की खीर में आ जाते हैं औषधीय गुण, जानें धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं

sharad purnima kheer ka mahatva: अश्विन पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा कल 16 अक्टूबर को है। इसे कोजागर पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रभाव से खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं। आइये जानते हैं इसकी धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं …

जयपुरOct 17, 2024 / 10:51 am

Pravin Pandey

sharad purnima kheer ka mahatva

sharad purnima kheer ka mahatva: शरद पूर्णिमा खीर का महत्व

धार्मिक मान्यताएं

sharad purnima kheer ka mahatva: सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का खास महत्व है। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में धन की कमी दूर होती है। लेकिन सबसे खास है, शरद पूर्णिमा उपाय, जिसमें खीर में औषधीय गुण पैदा हो जाते हैं।

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार इस वर्ष शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। इसकी धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन आकाश से अमृत की बूंदों की वर्षा होती है। यह अमृत वर्षा 16 कलाओं से पूर्ण चंद्रमा की किरणों के माध्यम से होती है। इसी कारण इस दिन पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा का उजाला फैला होता है और धरती दूधिया रोशनी से नहाई भी जान पड़ती है। इसलिए इस दिन चांद की रोशनी में खीर रखने की परंपरा है।

यह भी माना जाता है कि आज के दिन ही मां लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस तिथि को धन-दायक भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और जो लोग रात्रि में जागकर मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं, वे उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं और धन-वैभव प्रदान करती हैं।

अमृत जैसी खीर की वैज्ञानिक मान्यता

sharad purnima kheer ka mahatva: वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। इस समय अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्र किरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं।
इससे इस समय पूर्णिमा की चांदनी में खुले आसमान के नीचे रखी गई खीर चंद्रमा के प्रभाव से औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है। चंद्रमा की इन्हीं किरणों के कारण खीर अमृत के समान हो जाती है। इसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा।

श्वांस और आंखों की रोशनी संबंधित मान्यताएं

डॉ. अनीष व्यास के अनुसार नेचुरोपैथी और आयुर्वेद विशेषज्ञों का कहना है कि शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है। इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है। इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है। रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। यह पेट को ठंडक पहुंचाती है। श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है।

चांदी के बर्तन में खीर बनाने से बढ़ती है इम्युनिटी

मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की खीर का संपूर्ण लाभ पाने के लिए खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए। चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। लेकिन इसमें हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है और मान्यता बनी कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है क्योंकि चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं, जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है।

शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि आरंभ: 16 अक्टूबर 2024 को रात 8:45 बजे से
पूर्णिमा तिथि समापनः 17 अक्टूबर 2024 को शाम 4:50 बजे
शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा: 16 अक्टूबर 2024
(खास बात है कि इस दिन रवि योग, रेवती नक्षत्र का शुभ संयोग भी है।)

कोजागरी के इस उपाय से तंगी से छुटकारा

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा पर ही महारास की रचना की थी। इस दिन चंद्र देवता की विशेष पूजा की जाती है और खीर का भोग लगाया जाता है, जिसे रात में आसमान के नीचे खीर रखा जाता है।

वहीं कोजागरी पूर्णिमा का त्योहार पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि कोजागरी पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी की विशेष पूजा से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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