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समाजको संगठित रखने में धर्म की भूमिका महत्वपूर्ण : राज्यपाल गहलोत

राज्यपाल गहलोत ने सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में धर्म के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, धर्म समाज को संगठित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह व्यक्तियों को धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से प्रभावित करता है तथा एकता की भावना को बढ़ावा देता है। जैन दर्शन में ‘अहिंसा परमो धर्म’ का सिद्धांत विशेष महत्व रखता है, जो सभी जीवों के प्रति दया की शिक्षा देता है।

बैंगलोरJul 06, 2024 / 12:16 pm

Nikhil Kumar

– जैन पुराण आचार्य चरित्र भाग -3 ग्रन्थ का विमोचन

बेंगलूरु. राज्यपाल थावरचंद गहलोत Governor Thaawarchand Gehlot  ने शुक्रवार को शहर के पैलेस ग्राउंड में अखिल भारतीय जैन मंच, बेंगलूरु की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में Jain Purana Acharya Charitra Part-3 ग्रन्थ का विमोचन किया। उन्होंने धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं को पीढ़ियों तक संरक्षित और प्रसारित करने में धार्मिक साहित्य के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, हमारे धार्मिक ग्रंथ धार्मिक सिद्धांतों, नैतिकता, समाज सेवा और ज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक प्रभाव

राज्यपाल गहलोत ने सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में धर्म के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, धर्म समाज को संगठित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह व्यक्तियों को धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से प्रभावित करता है तथा एकता की भावना को बढ़ावा देता है। जैन दर्शन में ‘अहिंसा परमो धर्म’ का सिद्धांत विशेष महत्व रखता है, जो सभी जीवों के प्रति दया की शिक्षा देता है। उन्होंने युवा पीढ़ी से धर्म और संस्कृति को अपनाने और बढ़ावा देने की अपील की। उन्होंने जैन Jain दर्शन के व्यापक संदेश पर भी टिप्पणी की, जिसमें सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और घृणा रहित जीवन जीने के सिद्धांतों पर जोर दिया गया।
प्रेरणादायी और लाभदायक

राज्यपाल गहलोत ने कहा, जैन पुराण भाग-3 सभी के लिए उपयोगी है। जैन पुराण भाग-1 और 2 को पढऩे के बाद मैंने उन्हें प्रेरणादायी और लाभदायक पाया। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से अंतिम तीर्थंकार भगवान महावीर स्वामी का धर्म प्रशासन आज भी सक्रिय है। महावीर स्वामी के बाद सुधर्मा स्वामी आचार्य पद पर आसीन हुए और प्रथम आचार्य बने। जैन पुराण भाग-3 आचार्य चरित्र में इन आचार्यों के जीवन, जनोपयोगी और स्वावलंबी कार्यों का वर्णन किया गया है।
जैन संस्कृति से भी जोड़ेगा

समाज सेवक महेन्द्र मुणोत ने कहा कि प्रेम, श्रद्धा, आस्था, भक्ति, समर्पण और संस्कृति के अनूठे संगम के बीच राज्यपाल गहलोत ने पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक ज्ञान का खजाना है। यह पढऩे वालों का ज्ञान वर्धन तो करेगा ही साथ में जैन संस्कृति से भी जोड़ेगा।
चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर लोग प्रकृति और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। यह किताब निश्चित रूप से लोगों को संस्कृति से जोड़ेगी। धर्म केवल आस्था का नाम नहीं है। धर्म एक विज्ञान हैं, जो जीवन जीने की कला सिखाता है। धर्म अपने आप में आनंद है। जैन कुल में जन्म हुआ। अहिंसा, परोपकार, सेवा विरासत में मिली। हिंदुत्व जाति या संप्रदाय का नाम नहीं है। कल को बदलने के लिए आज को बदलना होगा।
हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे

एक घटना को याद करते हुए मुणोत ने कहा कि राज्य के एक सरकारी स्कूल में पुस्तक वितरण के दौरान एक बच्चे ने उनसे उनका नाम पूछा। जब उन्होंने अपना नाम महेन्द्र मुणोत जैन बताया तब बच्चे ने कहा कि जैनों के बारे में वह बहुत कुछ जानता है। जैन बहुत भले होते हैं। शराब नहीं पीते हैं। मांस नहीं खाते हैं। किसी के साथ धोखा भी नहीं करते हैं। कोई दुखी है तो उसकी सेवा करते हैं। बच्चे की बात सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन, अगले ही पल उन्हें लगा कि जो बच्चा हमारे बारे में सोच रहा है क्या हम आज भी वैसे हैं। हम खुद से पूछ मंथन करना चाहिए कि हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे।
जिम्मेदारी समझनी होगी

एक भारत श्रेष्ठ भारत, स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत आत्मनिर्भर भारत सहित विकसित भारत का सपना केवल सरकार के प्रयासों से साकार नहीं होगा। लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। देश खुशहाल और समृद्ध तो होगा ही अपने खोए हुए गौरव को पुन: प्राप्त करेगा।
कमल सिपानी, दिलीप सुराणा, धर्मचन्द बम्बकी, सुरेश कुमार मेहता, भेरुलाल बाफणा, सुरेंद्र हेगड़े, विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) डॉ. पी. सुखलेचा, जसवंतराज मांडोत और हस्मीमल सुखलेचा ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया। जैन पुराण के संपादक व All India Jain Forum, Bengaluru के अध्यक्ष देवीलाल सखलेचा Devilal Sakhalecha  ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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