सोम प्रदोष व्रत 2022 कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मणी जिसके पति की मृत्यु हो चुकी थी, जीवन निर्वाह करने के लिए भीख मांगती थी। उसका एक बेटा भी था जिसे वह भीख मांगने के दौरान अपने साथ ही लेकर जाती और सूर्यास्त तक वापस आ जाती थी। एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई। राजकुमार के पिता की मृत्यु हो चुकी थी और उसके राज्य पर शत्रुओं ने कब्जा कर लिया था। जिस कारण वह इधर-उधर भटक रहा था। राजकुमार की ऐसी हालत देखकर ब्राह्मणी उस पर दया करके अपने घर ले गई।
फिर एक दिन में ब्राह्मणी अपने पुत्र और राजकुमार के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई जहां उसे भगवान शंकर के प्रदोष व्रत की पूजन और व्रत विधि पता चली। यह जानकर ब्राह्मणी ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू कर दिया।
थोड़े दिनों के बाद ब्राह्मणी का पुत्र और राजकुमार दोनों जंगल में घूम रहे थे। जहां उन्होंने कुछ कन्याओं को भी खेलते देखा। ब्राह्मणी का पुत्र तो घर लौट आया लेकिन राजकुमार वहां अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या से बात करने लग गया और घर देरी से पहुंचा। अगले दिन राजकुमार फिर से वहीं पहुंच गया जहां अंशुमति अपने माता पिता के साथ बातें कर रही थी। जब अंशुमति के पिता ने राजकुमार को देखा तो उन्होंने पहचान लिया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार था और उसका नाम धर्मगुप्त था।
तब अंशुमति के पिता ने राजकुमार से कहा कि भोलेनाथ की कृपा से हम अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे। राजकुमार ने यह प्रस्ताव स्वीकार लिया और उसकी शादी अंशुमति से हो गई। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व के राजा विद्रविक की बड़ी सेना के साथ विधर्भ देश पर चढ़ाई कर दी। घमासान युद्ध के बाद धर्मगुप्त जीत गया और अपनी पत्नी के साथ वहां राज्य करने लगा।
फिर धर्मगुप्त ने महल में अपने साथ ब्राह्मणी और उसके बेटे को भी साथ रख लिया। जिससे उन्हें भी अपनी निर्धनता से छुटकारा मिल गया। फिर एक दिन जब अंशुमति ने धर्मगुप्त से पूछा कि यह सब कैसे संभव हुआ, तो राजकुमार ने बताया कि यह सब प्रदोष व्रत के ही पुण्य का फल है। तभी से यह व्रत बहुत फलदायी माना जाता है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)