सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में होता है, लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की अलग ही महिमा है।
सकट चौथ का महत्व ( Importance of Sakat Chauth )
संकष्टी का अर्थ संकटों को हरने वाली चतुर्थी होता है। महिलाएं अपने संतान की दीर्घायु और खुशहाली की कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है और उन्हें तिल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
सकट चौथ का पूजा मुहूर्त ( Sakat Chauth Shubh Muhurt )
सकट चौथ- 31 जनवरी, दिन – रविवार (2021)
चंद्रोदय का समय- 8 बजकर, 41 मिनट
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- 31 जनवरी को रात 8 बजकर 41 मिनट
चतुर्थी तिथि समाप्त- 1 फरवरी को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक
पूजा विधि ( Sakat Chauth Puja vidhi )
– प्रात:काल उठकर स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें ।
– भगवान गणेश की पूजा करें।
– पूजा के वक्त माता लक्ष्मी की भी मूर्ति जरूर रखें।
– दिनभर निर्जला उपवास करें।
– रात में चांद को अर्घ्य दें, गणेश जी की पूजा कर फिर फलहार करें।
– संभव हो तो फलहार में केवल मीठा व्यजंन ही खाए, सेंधा नमक का भी सेवन ना करें।
ऐसे करें चंद्रमा की पूजा-
सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूजा के बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत तोड़ा जाता है। चंद्रदेव को शहद, रोली, चंदन और रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य देना चाहिए। कुछ जगहों पर व्रत तोड़ने के बाद महिलाएं सबसे पहले शकरकंद का प्रयोग करती हैं।
सकट चौथ के दिन करें श्री गणेश की आरती- ( Sakat Chauth Arti of sri Ganesh ji )
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
सकट चौथ की कथा ( Sakat chauth Katha )
इसी दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकलकर आए थे। इसीलिए इसे सकट चौथ कहा जाता है। एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने दरबार पर गणेश को खड़ा कर दिया और किसी को अंदर नहीं आने देने के लिए कहा।
जब भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं।
जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेश गजानन कहलाए जाने लगे। इस दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ। सकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 कोटी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। कहा जाता है कि इस दिन गणपति किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते हैं।
दूसरी कथा-
एक समय की बात है, एक नगर में एक कुम्हार रहता था, पर एक दिन जब उसने बर्तन बनाने के बाद आवा लगाया तो वह नहीं पका। कुम्हार परेशान होकर राजा के पास गया और पूरी बात बताई। राजा ने राज्य के राजपंडित को बुलाकर कुछ उपाय सुझाने को बोला, तब राजपंडित ने कहा कि यदि हर दिन गांव के एक-एक घर से एक-एक बच्चे की बलि दी जाए तो रोज आवा पकेगा। राजा ने आज्ञा दी की पूरे नगर से हर दिन एक बच्चे की बलि दी जाए।
कई दिनों तक ऐसा चलता रहा और फिर एक बुढ़िया के घर की बारी आई, लेकिन उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा उसका एकलौता बेटा अगर बलि चढ़ जाएगा तो बुढ़िया का क्या होगा, ये सोच-सोच वह परेशान हो गई और उसने सकट की सुपारी और दूब देकर बेटे से बोला जा बेटा सकट माता तुम्हारी रक्षा करेगी, और खुद सकट माता का स्मरण कर उनसे अपने बेटे की सलामती आशीर्वाद मांगने लगी।
अलगी सुबह कुम्हार ने देखा की आवा भी पक गया और बालक भी पूरी तरह से सुरक्षित है। और फिर सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक जिनकी बलि दी गई थी, वह सभी भी जी उठें, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसी दिन से सकट चौथ के दिन मां अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए भगवान गणेश की पूजा कर व्रत करने लगी ।