गुरुवार व्रत कथा-
प्राचीन समय में एक बहुत ही दानवीर तथा प्रतापी राजा था जो हर गुरुवार को व्रत रखता था। साथ ही इस दिन वह जरूरतमंदों को दान आदि भी देता था। राजा का ऐसा करना रानी को अच्छा नहीं लगता था। रानी ना तो व्रत करती थी और राजा को भी मना किया करती थी। एक बार राजा शिकार के लिए वन को गया। घर पर केवल रानी और दासी ही थी। तभी देव गुरु बृहस्पति साधु का वेश धारण करके राजा के घर पर भिक्षा मांगने आए। तब रानी ने साधु वेश धारण किए हुए देव गुरु बृहस्पति से कहा कि, हे साधु महाराज! मैं इस दान-पुण्य के कार्यों से बहुत तंग आ चुकी हूं। कृपया ऐसा कोई मार्ग बताएं जिससे सारा धन समाप्त हो जाए और फिर मैं शांति से रह सकूं।
रानी के ऐसा बोलने पर साधु ने कहा कि, यदि तुम्हारी यही मनोकामना है तो मैं तुमसे जैसा कहूं तो वैसा ही करो। फिर साधु ने रानी से कहा कि, गुरुवार के दिन तुम्हें घर को गोबर से लीपना है। साथ ही इस दिन अपने बालों को पीली मिट्टी से धोते हुए स्नान करना। वहीं राजा से हजामत बनाने को कहना, खाने में मांसाहार का सेवन करना, धोबी को कपड़े धुलने के लिए देना। इन सभी कार्यों को 7 गुरुवार पर लगातार करना। इससे तुम्हारी सारी धन-संपत्ति नष्ट हो जाएगी। रानी को उपाय बताकर बृहस्पति देव अंतर्ध्यान हो गए।
साधु द्वारा बताए उपाय को रानी ने तीन गुरुवार तक ही किया था कि इतने में ही उसका सारा धन नष्ट हो गया। अब तो राजा के परिवार में खाने-पीने के लिए भी लाले पड़ गए। फिर एक दिन राजा रानी से बोला कि, यहां सभी लोग मुझे जानते हैं इस कारण यहां पर मैं कोई छोटा काम नहीं कर सकता। इसलिए तुम घर पर ही रहो मैं दूसरे देश जाता हूं। ऐसा कह कर राजा जब दूसरे देश चला गया। वहां पर वह लकड़ी काटता और उन्हें शहर में बेच देता। इसी तरह अपना जीवन का गुजारा करने लगा। राजा के दूसरे देश जाने पर रानी बहुत उदास रहने लगी।
एक बार तो रानी और दासी को 7 दिनों तक बिना खाए-पिए रहना पड़ा। इससे परेशान होकर रानी ने दासी से कहा कि, पास के शहर में उसकी बहन रहती है जो बड़ी धनवान है। इसलिए दासी तुम मेरी बहन के घर जाकर कुछ ले आओ ताकि हमारा गुजारा हो सके। ऐसा सुनकर दासी रानी की बहन के घर चली गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन बृहस्पतिवार गुरुवार व्रत की कथा सुन रही थी। तब दासी ने रानी की बहन को सारी बात बताई। इस पर रानी की बड़ी बहन ने कोई जवाब नहीं दिया। कोई जवाब न मिलने पर दासी बहुत परेशान हुई। फिर घर लौटकर दासी ने सारी बात रानी को बता दी। यह सब सुनकर रानी भी बहुत निराश हुई।
दूसरी तरफ रानी की बड़ी बहन मन में सोच रही थी कि मेरी बहन की दासी आई और मैं उससे कुछ बोली भी नहीं। इस कारण से उसे दुख हुआ होगा। फिर वह कथा पूर्ण करने के बाद अपनी बहन के घर जाकर बोली कि, बहन मेरा आज बृहस्पतिवार का व्रत है। मैं कथा सुन रही थी और उसी समय तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी। इस कारण से कथा सुनने के दौरान में ना तो उठ सकती थी और ना ही बोल सकती थी। इसलिए बिना कुछ कहे तुम्हारी दासी को वापस जाना पड़ा। अब बताओ कि तुम्हारी दासी मेरे घर क्यों आई थी।
तब रानी ने अपनी बड़ी बहन से रोते-रोते कहा कि, बहन हमारे घर में खाने को कुछ भी नहीं है। वह और उसकी दासी पिछले 7 दिनों से भूखे हैं। अब रानी की बड़ी बहन बोली कि, देख बहन! भगवान बृहस्पति देव सबकी इच्छा पूरी करते हैं। हो सकता है तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। पहले तो रानी को अपनी बहन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन बहन के बार-बार कहने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजकर अनाज देखने के लिए कहा तो वहां दासी को एक घड़े में अनाज मिल गया। यह देखकर दासी आश्चर्यचकित हो गई। तब दासी ने रानी से कहा कि, हमें भोजन न मिलने पर हम व्रत ही तो करते हैं इसलिए क्यों ना आपकी बहन से व्रत की कथा और विधि पूछी जाए, ताकि हम भी इस व्रत को कर सकें। तब रानी ने विस्तारपूर्वक अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत की कथा के बारे में पूछा।
रानी की बड़ी बहन ने बताया कि, गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। व्रत वाले दिन चने की दाल और मुनक्का केले की जड़ में अर्पित करना चाहिए और दीपक जलाकर व्रत कथा सुननी चाहिए। वहीं व्रत खोलते समय पीली खाद्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। व्रत की विधि बतलाकर रानी की बड़ी बहन अपने घर को चली गई।
7 दिन बाद गुरुवार पड़ने पर रानी और दासी ने साथ में व्रत किया। केले की जड़ में चना-गुड़ अर्पित किया और भगवान विष्णु का पूजन किया। लेकिन पूजन के बाद उन दोनों को इस बात का दुख हुआ कि व्रत खोलने के लिए पीला भोजन कहां से लाएंगे। व्रत रखने के कारण बृहस्पति देव उनसे प्रसन्न हो गए थे और एक साधारण व्यक्ति का रूप धर के दो थालियों में स्वादिष्ट पीला भोजन दासी को दे गए। यह देखकर दासी बहुत खुश हुई और रानी के साथ मिलकर उसने वही भोजन ग्रहण किया।
इसके बाद वे दोनों हर गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति देव ने उनके व्रत से प्रसन्न होकर उनकी धन-संपत्ति को फिर से लौटा दिया। लेकिन दोबारा से रानी आलस्य में लिप्त हो गई। दासी ने रानी से कहा कि, पहले भी तुम ऐसे ही करती थीं और इस कारण से तुम्हें यह सब झेलना पड़ा। अब जब बृहस्पति देव की कृपा से तुम्हें फिर से धन मिला है तो तुम फिर से आलस्य कर रही हो।
साथ ही दासी कहती है कि, इतनी मुसीबतें झेलने के बाद हमें फिर से सुख मिला है इसलिए हमें दान-पुण्य के कार्य करने चाहिए, जरूरतमंदों को भोजन कराना चाहिए और अपने धन को अच्छे काम में लगाना चाहिए। इससे कुल का मान-सम्मान बढ़ेगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी। साथ ही हमारे पितरों को भी शांति मिलेगी। दासी की बात मानकर रानी वैसा ही करने लगी इससे सभी जगह उसके प्रसिद्धि बढ़ गई।
इस प्रकार बृहस्पतिवार के व्रत कथा सुनने के बाद श्रद्धा के साथ आरती करें और फिर प्रसाद बांट कर उसे ग्रहण करना चाहिए।