रंभा तीज व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवों और असुरों के द्वारा अमृत कलश की चाह में किए गए समुद्र मंथन से अप्सरा रंभा की उत्पति हुई थी। माना जाता है कि समुद्र मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए थे उनमें से अप्सरा रंभा भी थीं। रंभा तीज का व्रत सुंदरता का प्रतीक मानी जाने वाली अप्सरा रंभा को ही समर्पित माना जाता है। जो स्त्री इस व्रत को विधि विधान से और श्रद्धापूर्वक करती है उसे अखंड सौभाग्यवती होने के साथ ही संतान और रूप की प्राप्ति होती है।
रंभा तृतीया व्रत मुहूर्त: तृतीया तिथि का प्रारंभ 1 जून, बुधवार को रात्रि 9 बजकर 47 मिनट से होकर इसका समापन 3 जून, शुक्रवार को रात्रि 12 बजकर 17 मिनट पर होगा। रंभा तीज का व्रत 2 जून को रखा जाएगा।
रंभा तृतीया पूजा मंत्र:
रंभा तृतीया के दिन पूजन के दौरान सुहागिन स्त्री और कुंवारी कन्याओं को ॐ महाकाल्यै नम:, ॐ महालक्ष्म्यै नम:, ॐ महासरस्वत्यै नम: आदि मंत्रों का जाप करना चाहिए।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)