उग्रा चतुर्दशी विन्द्याद्दारून्यत्र कारयेत्।
बन्धनं रोधनं चैव पातनं च विशेषतः।।
हिंदू कलैंडर के अनुसार हर माह में 2 चतुर्दशी होने के चलते एक वर्ष में 24 chaturdashi होती हैं। इन चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं। ऐसे में इस बार ज्येष्ठ मास की कृष्ण चतुर्दशी यानि 8 जून 2021 मंगलवार को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा, यह चतुर्दशी तिथि 8 जून को 11:24AM से शुरु होगी और 9 जून बुधवार को दोपहर 1:57PM पर समाप्त होगी।
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वहीं इस बार इस मासिक शिवरात्रि के दिन यानि 08 जून को Bhagwan Shankar की पूजा के लिए शुभ समय रात 12 बजे से लेकर 12 बजकर 40 मिनट तक, यानि कुल 40 मिनट का ही मुख्य समय है।
जानकारों के अनुसार चतुर्दशी तिथि की दिशा पश्चिम है और पश्चिम के देवता शनि हैं। वहीं चतुर्दशी तिथि चन्द्रमा ग्रह की जन्मतिथि भी है। माना जाता है कि चतुर्दशी की अमृतकला को स्वयं भगवान शिव ही पीते हैं।
शिव चतुर्दशी व्रत में भगवान Shiv के साथ माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय जी और शिवगणों की पूजा का महत्व है। इस दिन शिव पंचाक्षरी मंत्र – ‘नम: शिवाय ॐ नम: शिवाय‘। का जाप करना चाहिए।
ये कार्य वर्जित है इस दिन…
पुराणों के अनुसार अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री सहवास और तिल का तेल, लाल रंग का साग और कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है।
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वहीं पुराणों में पांच चतुर्थियों का विशेष महत्व माना गया है- इनमें भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी, कार्तिक कृष्ण की रूप या नरक चतुर्दशी, कार्तिक शुक्ल की बैकुण्ठ चतुर्दशी, वैशाख शुक्ल माह की नरसिंह चतुर्दशी और शिव चतुर्दशी को खास माना गया है।
ऐसे में अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत (विष्णु) की पूजा का विधान है। इस दिन अनंत सूत्र बांधने का विशेष महत्व होता है। जबकि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी आती है। इस दिन यमदेव की पूजा का विधान है।
इसके अलावा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इस दिन पूजा, पाठ जप और व्रत करने से श्रद्धालु को बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
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चतुर्दशी तिथि क्यों है खास?
धार्मिक पुस्तकों के अनुसार इस तिथि में भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में भगवान शिव की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। जबकि अगले दिन सुबह के समय जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
इसके अलावा ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी (जिसे महाशिवरात्रि भी कहते हैं) की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए भी चतुर्दशी तिथि का विशेष महत्व है। वहीं श्रावणमास की चतुर्दशी को शिवरात्रि, जबकि बाकी सभी चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि कहते हैं।