सद्गुरु समझाते हैं कि अगर अमेरिका को ही लें तो यह पृथ्वी का सबसे समृद्ध देश है लेकिन यहां के करीब 70 प्रतिशत वयस्क किसी न किसी तरह की दवा ले रहे हैं। यह भलाई नहीं है, यहां आनंद नहीं है। किसी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए गरीबी से संपन्नता की ओर पहुंचने की यह यात्रा आसान नहीं है। यह परिवेश के लिहाज से बहुत खर्चीली है, लेकिन वहां पहुंचकर यदि हमने यह नहीं सीखा कि भलाई क्या, कल्याण क्या है तो यह धोखा ही है।
योगी सद्गुरु का कहना है कि संपन्न समाज कई बार गरीब समाज से अधिक पीड़ित दिखता है। इसकी वजह है नाउम्मीदी। जैसे कि यदि कोई गरीब है तो उसे उम्मीद रहती है कि दस लाख रुपये मिल जाएं तो खुशियों बढ़ जाएंगी। लेकिन अमीर व्यक्ति जिसे धन कमाना आता है उसे उम्मीद कहीं दिखाई नहीं पड़ती। उसके अंदर की निराशा उसे खाती रहती है।
कितना भी आपने धन संपत्ति कमाई है, यदि उससे आपको खुशी नहीं मिल पा रही है, आपके अस्तित्व को उससे आनंद नहीं मिल पा रहा है तो उसका कोई मूल्य नहीं है। यह तृप्त नहीं होने देगी। ऐसे में जीवन में जो कुछ होगा वह झूठा होगा, झूठी मुस्कान, झूठी हंसी। यदि आप कहते हैं आप अच्छे हैं तो आप इसे समझ नहीं रहे।
सद्गुरु के अनुसार धन उपकरण मात्र है, लेकिन हम इसे बड़ा बना देते हैं। धन हमें बाहरी खुशियां देता है आंतरिक नहीं। यदि आपके पास बहुत सारा पैसा है फाइव स्टार होटल में रूकते हैं, यहां आपका शरीर, मन, दिमाग, ऊर्जा आनंददायक नहीं तो क्या यह होटल आपके किसी मतलब का है, नहीं। यह चारों बातें आपको पेड़ के नीचे भी खुशी प्रदान कर सकते हैं