हिंदू परंम्परा (Hindu Tradition)
हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं व मान्यताएं प्रचलित है। जिनमे से पैर छूकर या हाथ जोड़कर अभिवादन करने से लेकर पूजा के समय सिर ढ़कना और माथे पर तिलक लगाना, बिंदी लगाना ऐसी अनेक परंपराएं प्रचलित है। कहा जाता है बिंदी सुहाग की निशानी होती है। बिंदी के बिना सुहागिनों का श्रंगार अधूरा माना जाता है। इसके अलावा कोई भी भारतीय पोशाक माथे पर बिंदी लगाए बिना अधूरी मानी जाती है। लेकिन क्या आपको पता हैं इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं..
सुहाग की निशानी है बिंदी (Bindi is the sign of marriage)
महिलाओं का माथे बिंदी लगाना केवल स्टाइल स्टेटमेंट या सौदर्य से नहीं जुड़ा होता हैं। बल्कि इसका संबध सोलह शृंगार से भी है। हिंदू धर्म के अनुसार माथे का बीच का हिस्सा, जिसे ‘आज्ञा चक्र’ या ‘तीसरा नेत्र’ कहा जाता है। इसके साथ ही इस केंद्र को आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी माना जाता है। ऐसा कहा गया है कि इस स्थान पर बिंदी लगाने से मानसिक शांति, ध्यान और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बिंदी लगाने से बुरी नजर से बचाव होता है और सकारात्मक ऊर्जा भी आकर्षित होती है। यह भी पढ़ेः आखिर क्यों पहना जाता है बिछिया, क्या है इस रिवाज का राज बिंदी की धार्मिक मान्यता (Religious Belief Of Bindi)
बिंदी भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विशेष रूप से हिंदू धर्म में, महिलाओं के माथे पर सजने वाली बिंदी न केवल सौंदर्य का प्रतीक है। बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी छिपी हुई हैं। बिंदी का प्रयोग एक साधारण फैशन ट्रेंड से कहीं बढ़कर है। यह भारतीय नारीत्व, शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
यह भी पढ़ेः राजस्थान का एक ऐसा मंदिर, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी करते हैं मां देवी की पूजा पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि बिंदी देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती जी लगाती थी। इसके साथ ही यह नारी और शक्ति, सौभाग्य का प्रतीक भी मानी जाती है। इसके साथ ही ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार लाल रंग की बिंदी का संबंध मंगल ग्रह से बताया गया है। क्योकिं इस रंग के कारक मंगल हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है कि महिलाओं के लाल रंग के बिंदी लागाने से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
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