मां भगवती यानि मां जगदंबा का अवतरण के संबंध में भगवत पुराण कहती है कि आदि शक्ति मां भगवती ने महान लोगों की रक्षा के लिए ही ये अवतार ग्रहण किया है। इसके साथ ही देवी भागवत पुराण के मुताबिक देवी का अवतरण वेद-पुराणों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए हुआ है।
इसी प्रकार ऋग्वेद में देवी दुर्गा को ही आदि शक्ति बताते हुए उन्हें ही सारे विश्व का संचालन करने वालीं बताया गया हैं। इसी कारण विश्व और अपने भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर देवी ने कई अवतार भी लिए, जिनका वर्णन कई धर्मशास्त्रों में भी मिलता है।
देवी ने किस कारण लिया कौन सा अवतार
1. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महादैत्य रूरु हिरण्याक्ष वंश में हुआ था। इसी रूरु का एक पुत्र दुर्गम यानि दुर्गमासुर था। उसके द्वारा ब्रह्मा जी की तपस्या कर चारों वेदों को अपने अधीन कर लेने से वेदों की अनुपस्थिति के चलते समस्त क्रियाएं लुप्त हो गयीं।
जिसके कारण ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग दिया, इससे चौतरफा हाहाकार मच गया। ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने से यज्ञ-अनुष्ठान बंद होने से देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से भयंकर अकाल पड़ा, जिससे लोग मरने लगे।
दुर्गमासुर के अत्याचारों से निजाद के लिए देवताओं ने पर्वतमालाओं में छिपकर देवी जगदंबा की उपासना की। उनकी आराधना से महामाया मां भुवनेश्वरी आयोनिजा रूप में प्रकट हुई।
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समस्त सृष्टि की ऐसी दुर्दशा देख जगदंबा का ह्रदय पसीज गया और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी।
जिससे मां के शरीर पर सौ नैत्र प्रकट हुए। देवी के इस स्वरूप को शताक्षी के नाम से जाना गया। मां के अवतार की कृपा से संसार में महान वृष्टि हुई और नदी- तालाब वापस जल से भर गये। देवताओं ने उस समय मां की शताक्षी देवी नाम से आराधना की।
वहीं ये भी कहा जाता है कि शताक्षी देवी ने जब एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया। तब वह चतुर्भुजी स्वरूप में कमलासन पर विराजमान थी। मां के हाथों मे कमल, बाण, शाक-फल और एक तेजस्वी धनुष था।
इस स्वरूप में माता ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किए। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। इसी दिव्य रूप में उन्होंने असुर दुर्गमासुर और अन्य दैत्यों का संहार किया। तब देवी शाकंभरी रूप में पूजित हुईं।
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2. वहीं दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार, मां भगवती ने देवताओं से कहा “वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें युग में शुंभ और निशुंभ नामक दो अन्य महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नंद के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेकर दोनों असुरों का नाश करूंगी।
इसके बाद पृथ्वी पर अवतार लेकर मैं वैप्रचिति नामक दैत्य के दो असुर पुत्रों का वध करूंगी। उन महादैत्यों का भक्षण कर लाल दंत (दांत) होने के कारण तब स्वर्ग में देवता और धरती पर मनुष्य सदा मुझे ‘रक्तदंतिका’ कह मेरी स्तुति करेंगे।” इस तरह देवी ने रक्तदंतिका का अवतार लिया।
3. मान्यता के अनुसार भीमा देवी हिमालय और शिवालिक पर्वतों पर तपस्या करने वालों की रक्षा करने वाली देवी हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब हिमालय पर्वत पर असुरों का अत्याचार बढ़ा। तब भक्तों ने देवी की उपासना की।
भक्तों की आराधना से प्रसन्न होकर देवी ने भीमा देवी के रूप में अवतार लिया। यह देवी का अत्यंत भयानक रूप था।
देवी का वर्ण नीले रंग का, चार भुजाएं और सभी में तलवार, कपाल और डमरू धारण किए हुए। भीमा देवी के रूप में अवतार लेने के बाद देवी ने असुरों का संहार किया।
4. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब तीनों लोकों पर अरुण नामक दैत्य का आतंक बढ़ा। तो देवता और संत सभी परेशान होने लगे। ऐसे में सभी त्राहिमाम करते हुए भगवान शंकर की शरण में पहुंचे और वहां अपनी आप बीती कह सुनाई।
इसी समय आकाशवाणी हुई कि सभी देवी भगवती की उपासना करें। वह ही सबके कष्ट दूर करेंगी। तब सभी ने मंत्रोच्चार से देवी की आराधना की। इस पर देवी मां ने प्रसन्न होकर दैत्य का वध करने के लिए भ्रामरी यानी कि भंवरे का अवतार लिया। कुछ ही पलों में मां ने उस दैत्य का संहार कर दिया। सभी को उस राक्षस के आतंक से मुक्ति मिली। तब से मां के भ्रामरी रूप की भी पूजा की जाने लगी।
5. एक कथा के अनुसार शताक्षी देवी ने जब एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया। तब वह चतुर्भुजी स्वरूप कमलासन पर विराजमान था। मां के हाथों मे कमल, बाण, शाक-फल और एक तेजस्वी धनुष था।
इस स्वरूप में माता ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किए। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। इसी दिव्य रूप में उन्होंने असुर दुर्गमासुर और अन्य दैत्यों का संहार किया। तब देवी शाकंभरी रूप में पूजित हुईं।