किस वजह से संपन्न समाज गरीबों से भी अधिक पीड़ित दिखता है
आध्यात्मिक गुरु और योगी सद्गुरु जग्गी वासुदेव (Sadhguru Jaggi Vasudev) कहते हैं कि बहुत से लोग पैसे को धर्म की तरह मानते हैं। लेकिन मेरे नजरिए में धन या पैसा मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के लिए मात्र एक उपकरण है, यह पूरा जीवन नहीं है। संपन्न समाज कई बार गरीब समाज से अधिक पीड़ित दिखता है। इसकी वजह है नाउम्मीदी।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार कितना भी आपने धन संपत्ति कमाया है, लेकिन आपको खुशी नहीं मिल पा रही है, आपके अस्तित्व को उससे आनंद नहीं मिल पा रहा है तो उसका कोई मूल्य नहीं है। यह आपको तृप्त नहीं होने देगी। ऐसे में जीवन में जो कुछ होगा तो वह झूठा होगा, झूठी मुस्कान, झूठी हंसी। यदि आप कहते हैं आप अच्छे हैं तो आप इसे समझ नहीं रहे।
धन की यह है सीमा
सद्गुरु के अनुसार धन उपकरण मात्र है, लेकिन हम इसे बड़ा बना देते हैं। धन हमें बाहरी खुशियां देता है आंतरिक नहीं। उनके अनुसार आप दुनिया में आए हैं तो आपका लक्ष्य मानवता के गहरे आयामों को खोजने का होना चाहिए। जीवन की शांति और परम आनंद को खोजना ही जीवन का मकसद होना चाहिए। यही इस संसार की सबसे बड़ी चीज है, जिसे पैसे से भी नहीं खरीदा जा सकता।
इस बहुमूल्य चीज के लिए इतिहास में कई लोगों ने छोड़े हैं तख्त ओ ताज
गौतम बुद्धः गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईं. पू. क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर हुआ था। इनके जीवन में हर तरह की सुख सुविधा थी। इनके लिए महल में भोग विलास का प्रबंध था। लेकिन जीवन को देखने के बाद उनको विरक्ति हो गई और सम्यक सुख शांति के लिए उन्होंने घर द्वार त्याग दिया और तपस्या के लिए चले गए।
महावीर स्वामीः जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था। लेकिन इनकी भोगों में रूचि नहीं हुई। आखिरकार उन्होंने तपस्या का मार्ग चुना और कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। इस दौर के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी आखिर में धन संपदा से विरक्त हुए और महावीर स्वामी की राह पकड़ी।
चंद्रगुप्त मौर्यः श्रवणबेलगोला से मिले शिलालेखों के अनुसार, मौर्य वंश के शासक चन्द्रगुप्त ने 24 साल तक शासन के बाद ये जैन मुनि बन गए। जैन ग्रंथों के अनुसार चन्द्रगुप्त अन्तिम मुकुट धारी मुनि हुए। ये स्वामी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला चले गए थे। वहीं उपवास से शरीर त्याग किया।
पांडवः महाभारत युग की कहानियों के अनुसार कुछ वर्षों तक शासन के बाद महाराज युधिष्ठिर ने भाइयों के साथ राजपाट अपने वंश के दूसरे लोगों को सौंपकर संन्यास ले लिया था। यह लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती। बहुतेरे ऐसे नाम हैं जिन्हें राजपाट में शांति नहीं मिली और उन्होंने इसे त्याग दिया।
आज इन धनवानों और सफल व्यक्तियों ने पकड़ी परम आनंद की राह
मनोवैज्ञानिक रिचर्ड एल्पर्टः कभी हावर्ड में सहायक प्रोफेसर रहे मनोवैज्ञानिक रिचर्ड एल्पर्ट ने बाबा नीम करोली से मुलाकात के बाद आध्यात्म की राह पकड़ ली और रामदास बन गए।
हीरा कारोबारी की बेटीः इसी साल जनवरी में गुजरात के बड़े हीरा कारोबारी की बेटी देवांशी संघवी ने जो संघवी एंड संस की इकलौती वारिस थीं, उन्होंने आठ साल की उम्र में अरबों की दौलत ठुकराकर संन्यास ले लिया।
करोड़पति जैन परिवार के चार लोग बने संन्यासी गुजरात के भुज में इसी साल 2023 के फरवरी महीने में करोड़पति जैन परिवार के चार लोगों ने अपनी संपत्ति दान कर संन्यास की दीक्षा ले ली। ये कपड़ों के बड़े होलसेल कारोबारी थे। दीक्षार्थी पीयूष भाई का सलाना एक करोड़ रुपये का टर्नओवर था। इससे पहले 2021 में सूरत में एक समारोह में 75 लोगों ने संन्यास ले लिया था, जिसमें से 15 करोड़पति थे।
इन्होंने ठुकरा दी सौ करोड़ की दौलत मध्य प्रदेश के नीमच के एक जैन युवा (श्वेताम्बर) दंपती ने छह साल पहले तीन साल की बेटी और लगभग 100 करोड़ की दौलत ठुकरा दी और संन्यासी बन गए। कारोबारी नाहर सिंह के पोते सुमित राठौर और इंजीनियरिंग गोल्डमेडलिस्ट उनकी पत्नी अनामिका के इस फैसले ने लोगों को हैरान कर दिया था। उन्होंने करोड़ों की दौलत ठुकराकर आत्मकल्याण का मार्ग चुन लिया था। (यह तो चंद नाम है, इसकी लिस्ट और लंबी है, जो बताने के लिए काफी है कि परम शांति दौलत में नहीं है)