मान्यता है कि कांवड़ यात्रा निकालकर पवित्र स्थानों से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मान्यता है कांवड़ यात्रा से भक्त के पापों का नाश हो जाता है। वह जीवन मरण के चक्र से छूट जाता है और मृत्यु बाद शिवलोक की प्राप्ति करता है। यह भी कहा जाता है कि इससे हर कदम के साथ एक अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है। अब कुछ लोग वाहनों से भी कांवड़ लेकर चलते हैं, लेकिन एक निश्चित दूरी तक वो भी कांवड़ को कांधे पर रखकर पैदल चलते हैं।
कांवड़ यात्रा का इतिहासः कांवड़ यात्रा का इतिहास सदियों पुराना है, लेकिन पहले साधु, मारवाड़ी व्यापारी और संपन्न वर्ग के कम लोग कांवड़ यात्रा करते थे। 1960 के आसपास तक ये लोग हरिद्वार या सुल्तानगंज जाते थे और जल लेकर लौटकर भगवान का जलाभिषेक करते थे। हालांकि अब कांवड़ यात्रा उत्सवी रंग ले रहा है, हिंदू समाज के सभी समुदायों के लोग उत्साह के साथ कांवड़ यात्रा निकालते हैं और जल लाकर आराध्य शिव का जलाभिषेक करते हैं।
कहा जाता है कि पहले कांवड़िये भगवान परशुराम थे, भगवान शिव के परम भक्त और विष्णु के अवतार भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर बागपत में पुरा महादेव मंदिर में शिव का गंगाजल से अभिषेक किया था। हालांकि कुछ धार्मिक ग्रंथों में पहला कांवड़िया रावण को माना गया है। इसके अनुसार कांवड़ यात्रा की परंपरा सागर मंथन से ही पड़ गई थी।