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Narak Chaturdashi 2021 Date- नरक चौदस 2021 का शुभ मुहूर्त, स्नान विधि, पूजा विधि और इस दिन क्या अवश्य करें

Choti Diwali कृष्‍ण चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि भी

Nov 02, 2021 / 10:20 am

दीपेश तिवारी

Roop Chodas

Roop Chodas

Narak Chaturdashi 2021 Date: दीपावली पर्व का दूसरा त्यौहार नरक चतुर्दशी इस बार बुधवार, 3 नवंबर 2021 को मनाया जाएगा। माना जाता है कि इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान न करने वाला नरक का भागी माना जाता है। वहीं नरक चौदस के दिन यमराज के अलावा हनुमान पूजा, श्रीकृष्ण पूजा, काली पूजा, शिव पूजा और भगवान वामन की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार इस दिन इन 6 देवों की पूजा करने से समस्त प्रकार की परेशानियों मिट जाती हैं।

दरअसल पांच दिवसीय पर्व दीपावली के पहले दिन धनतेरस के बाद दूसरे नंबर पर नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है, इसे रूप चौदस या काली चौदस भी कहा जाता हैं। वहीं कृष्‍ण चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि भी मनाई जाती है। तो आइये जानते हैं कि इस साल यानि 2021 का ये पर्व क्यों है खास साथ ही जानते हैं इस दिन के शुभ मुहूर्त व वह बातें जो आप जानना चाहते हैं।

Yam Ka Diya

हिंदू पंचांग के अनुसार बुधवार,03 नवंबर 2021 को सुबह 09:02 बजे से चतुर्दशी तिथि शुरु होगी। वहीं इसका समापन बृहस्पतिवार, 04 नंबर 2021 सुबह 06:03 बजे होगा। यहां ये समझ लेना अति आवश्यक है कि पंचांग भेद के चलते समय या तिथि में आगे पीछे हो सकता है।

नरक चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त :
अमृत काल– 01:55 AM से 03:22 AM तक।
ब्रह्म मुहूर्त– 05:02 AM से 05:50 AM तक।
विजय मुहूर्त – 01:33 PM से 02:17 PM तक।
गोधूलि मुहूर्त- 05:05 PM से 05:29 PM तक।
सायाह्न संध्या मुहूर्त- 05:16 PM से 06:33 PM तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग 06:07 AM से 09:58 AM
निशिता मुहूर्त- 11:16 PM से 12:07 AM तक।

दिन का चौघड़िया :
लाभ : 06:38 AM से 08:00 AM तक।
अमृत : 08:00 AM से 09:21 AM तक।
शुभ : 10:43 AM से 12:04 PM तक।
लाभ : 04:08 PM से 05:30 PM तक।
रात का चौघड़िया :
शुभ : 07:09 PMसे 08:47 PM तक।
अमृत : 08:47 PM से 10:26 PM तक।
लाभ : 03:22 AM से 05:00 AM तक।

नरक चतुर्दशी स्नान विधि :
1. नरक चतुर्दशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पूर्व उठकर स्नान करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन ऐसा करने से रूप में निखार आ जाता है। इस दिन स्नान के लिए एक तांबे के लौटे में जल भरकर कार्तिक अहोई अष्टमी के दिन रखा जाता है और फिर लौटे के जल को स्नान के जल में मिलाकर स्नान किया जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।

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2. नरक चतुर्दशी के दिन स्नान से पूर्व तिल के तेल से शरीर की मालिश करने के बाद औधषीय पौधा अपामार्ग अर्थात चिरचिरा को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाने का भी प्रचलन है।

3. इस दिन स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करने का भी विधान है। माना जाता है कि ऐसा करने से पूरे साल में किए पापों का नाश होता है।

नरक चतुर्दशी पर क्या करें :
1. नरक चतुर्दशी के दिन घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर यमराज के लिए तेल का दीया लगाया जाता है।
2. नरक चतुर्दशी को शाम के समय सभी देवताओं की पूजा के बाद घर की चौखट के दोनों ओर तेल के दीपक जलाकर रखा शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से लक्ष्मीजी का घर में वास होता है।

3. माना जाता है कि सौंदर्य की प्राप्ति के लिए नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए।

4. इसके अलावा नरक चतुर्दशी पर अर्धरात्रि के समय (निशीथ काल ) घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। माना जाता है कि इससे दरिद्रता का नाश हो जाता है।

नरक चतुर्दशी की पूजा विधि :
1. नरक चतुर्दशी के दिन यमराज, श्रीकृष्ण, काली माता, भगवान शिव, रामदूत हनुमान और भगावन वामन की पूजा करने का विधान है।
2. इस दिन घर के ईशान कोण में ही पूजा करनी चाहिए। वहीं पूजा के दौरान अपना मुंह ईशान कोण, पूर्व या उत्तर की ओर रखना चाहिए। इस पूजन के दौरान पंचदेव की स्थापना अवश्य करें। पंचदेवों में श्रीगणेश, भगवान विष्णु, देवी मां दुर्गा, भगवान शिव और सूर्यदेव आते हैं।

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Diwali 2021
IMAGE CREDIT: Diwali

3. 6 देवों की इस दिन षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। यानि इनकी 16 क्रियाओं से पूजा करना उचित माना जाता है। षोडशोपचार पूजा में पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार शामिल होते है। वहीं सांगता सिद्धि के लिए पूजन के अंत में दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।

4. इसके पश्चात सभी देवों के सामने धूप, दीप जलाएं। इसके पश्चात उनके मस्तक पर हलदी कुंकूम, चंदन और चावल लगाएं। और फिर उन्हें हार और फूल पहनाएं। पूजन में अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदि) लगाना श्रेष्ठ माना जाता है। षोडशोपचार की समस्त सामग्री से इसी तरह पूजा करें। वहीं पूजा के दौरान उनके मंत्र का भी जाप करें।

5. पूजा के पश्चात प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। यहां इस बात को निश्चित कर लें कि प्रसाद या नैवेद्य (भोग) में नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही हर पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।

6. अंत में सभी देवों की आरती कर पश्चात नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन करें।

7. मुख्‍य पूजा के बाद प्रदोष काल में मुख्य द्वार या आंगन में दीये जलाएं। इनमें से एक दीया विशेषकर यम के नाम का भी जलाएं। वहीं रात्रि के दौरान घर के सभी कोने जहां विशेषकर अंधेरा रहता हो वहां अवश्य दीए जलाएं।

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