भस्मासुर से भी जुड़ी है कथाः बता दें कि आज भगवान विष्णु के जिस स्वरूप की पूजा होती है, उसी रूप में भगवान विष्णु ने एक बार भगवान शिव को भस्मासुर से बचाने की लीला की थी। इससे यह सोमवार विशेष हो गया है।
कथा के अनुसार एक बार भस्मासुर नाम के दानव ने शिवजी की कठोर तपस्या की और उनसे ऐसा वरदान पा लिया कि वह जिस किसी के सिर पर अपना हाथ रखे वह भस्म हो जाए। इसके बाद अपने वरदान का असर जानने के लिए वह भगवान शिव के ही पीछे दौड़ने लगा, भगवान भी उसके संग लीला करने लगे। इस बीच अपने आराध्य भोलेनाथ की लीला में साथ देने और उनको मुसीबत से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और भस्मासुर को मोहित कर नृत्य के बहाने उसके ही सिर पर उसका हाथ रखवा दिया। इससे वह असुर स्वयं ही भस्म हो गया।
Mohini Ekadashi 2023: मोहिनी एकादशी व्रत 1 मई को पड़ रहा है। दृक पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत 30 अप्रैल रात 8.28 बजे से हो रही है और यह तिथि संपन्न एक मई रात 10.09 बजे हो रही है। इसलिए उदया तिथि में मोहिनी एकादशी व्रत 1 मई को रहेगा।
मोहिनी एकादशी पारण का समयः एकादशी का पारण 2 मई को सुबह 5.47 एएम से 8.23 एएम के बीच होगा। मोहिनी एकादशी के दिन बन रहे शुभ योगः मोहिनी एकादशी के दिन रवि योग बन रहा है। यह बेहद शुभ योग माना जाता है, इसका समय 5.47 एएम से 5.51 पीएम तक है। इस योग में किए जाने वाले कार्यों में सफलता मिलती है। इसके अलावा इस दिन इस तरह कुछ और शुभ योग बन रहे हैं।
अमृतकालः 10.50 एएम से 12.35 पीएम तक ये भी पढ़ेंः Mohini Ekadashi Katha: मोहिनी एकादशी व्रत कथा सुनने से एक हजार गौदान के बराबर पुण्य, कौडिन्य ऋषि ने बताई है इसकी महिमा
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम पत्नी वियोग में दुखी हो गए तो महर्षि वशिष्ठ ने मोहिनी एकादशी व्रत रखने की सलाह दी। इस पर भगवान श्रीराम के दुखों का नाश हुआ, और माता सीता की खोज बेहतर ढंग से कर पाए। इससे यह एकादशी अनजाने में हुए पापों का प्रायश्चित करने वाली भी मानी जाने लगी। शिव को भस्मासुर से बचाने की लीला भी मोहिनी अवतार से ही संबंधित है।
मोहिनी एकादशी पूजा विधि (mohini ekadashi katha)
1. मोहिनी एकादशी के दिन दूसरे एकादशी की तरह ही सुबह जल्दी उठें, स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लें।
2. मंदिर में या घर में ही भगवान की प्रतिमा या तस्वीर के सामने बैठकर विधि विधान से पूजा करें। साथ ही भगवान शिव की भी पूजा करें।
3. भगवान विष्णु को रोली, मौली, पीला अक्षत, चंदन, ऋतु फल, पीला पुष्प, मिष्ठान अर्पित करें।
4. धूप, दीप से भगवान विष्णु की आरती करें और दीपदान करें।
5. ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जाप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
6. कपट, दुर्गुणों से खुद को दूर रखते हुए नारायण का ध्यान करें।
7. आम, खरबूजा, ककड़ी जैसी शीतल चीजें दान करें।