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Goddess Dhumavati: महिलाएं क्यों नहीं करती माता धूमावती की पूजा, ये है कथा

Maa Dhumavati: मां धूमावती के प्राकट्य की कथाएं अनूठी हैं। इन्हें आदिशक्ति पार्वती की सातवीं महाविद्या माना जाता है और इनका प्राकट्य दिवस ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि ये सभी दुखों का नाश करने वाली और सभी मनोकामना पूरी करने वाली हैं लेकिन महिलाएं माता धूमावती की पूजा नहीं करतीं..आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी…

भोपालJun 10, 2024 / 09:41 pm

Pravin Pandey

maa dhumavati ki katha

मां धूमावती की कहानी

मां धूमावती के प्राकट्य की कथा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार माता पार्वती को भूख लगी। लेकिन कैलाश पर भोजन की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस पर वो भगवान भोलेनाथ के पास पहुंचीं, उस वक्त आदिदेव महादेव समाधि की अवस्था में थे। माता पार्वती ने काफी गुहार लगाई, लेकिन उनका ध्यान नहीं टूटा और माता की भूख शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। भूख से व्याकुल माता पार्वती ने महादेव को ही निगल लिया।

ऐसा करते ही माता पार्वती की देह से धुआं निकलने लगता है। हालांकि उनकी भूख तब तक शांत हो जाती है। इसके बाद भगवान शिव अपनी माया से माता के उदर से बाहर आते हैं और कहते हैं धूम से व्याप्त देह के कारण इस रूप में तुम्हारा नाम धूमावती होगा। यह भी कहा जाता है भगवान भोलेनाथ ने उदर से बाहर निकालने की गुहार लगाई तब माता ने ही उन्हें उदर से बाहर निकाला और भगवान भोलेनाथ ने उन्हें शाप दे दिया कि आज से और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी।

एक अन्य मान्यता के अनुसार माता पार्वती के भगवान शिव को निगल लेने से उनका स्वरूप विधवा जेसा हो जाता है। भगवान शिव के गले में मौजूद विष के कारण उनका पूरा शरीर धुआं धुआं हो जाता है। उनकी काया श्रृंगारहीन हो जाती है। तब शिवजी ने अपनी माया से कहा कि मुझे निगलने के कारण आप विधवा हो गईं। इसलिए आपका एक नाम धूमावती होगा।

इसलिए महिलाएं नहीं करतीं पूजा

कुल मिलाकर माता का यह रूप विधवा जैसा है, और उन्होंने अपने पति को ही निगल लिया था। इसलिए इस स्वरूप में महिलाओं के लिए वो पूज्य नहीं रह गईं। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह स्वरूप महिलाओं की ओर से तिरस्कृत है, मां तो पुत्र-पुत्री दोनों के लिए समान रूप से वात्सल्यमयी होती हैं। इसलिए इस स्वरूप का दूर से ही महिलाएं दर्शन करती हैं।
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भगवान भोलेनाथ ने माता को दी थी क्या सीख

माता धूमावती के प्राकट्य की एक और कथा प्रचलित है। यह कथा आदिशक्ति के सती अवतार से जुड़ी हुई है। इसके अनुसार आदि शक्ति ने राजा दक्ष के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनके पिता की इच्छा के विरुद्ध शिवजी से विवाह किया। इससे दक्ष रुष्ट रहा करते थे।

एक बार राजा दक्ष ने शिवजी को अपमानित करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया और शिव-सती को छोड़कर सभी देवताओं को निमंत्रित किया। माता सती को दक्ष के घर यज्ञ की जानकारी मिली तो पहले तो दुखी हुईं, फिर यह सोचकर कि पिता के यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती, उन्होंने मन की बात भगवान भोलेनाथ को बताई। महादेव यज्ञ के पीछे का रहस्य समझ रहे थे, इसलिए उन्होंने सती को समझाया कि विवाह के बाद पुत्री को बिना निमंत्रण मायके नहीं जाना चाहिए। लेकिन सती वहां जाने के लिए अड़ी रहीं और आखिरकार दक्ष के घर चली गईं।

यहां उनके पहुंचने पर दक्ष ने शिव और शिवा दोनों का तिरस्कार किया। इससे दुखी होकर उन्होंने स्वेच्छा से दक्ष के यज्ञ में ही कूदकर खुद को भस्म कर लिया। इससे उनके शरीर से जो धुआं निकला, उससे माता धूमावती का जन्म हुआ। यानी माता धूमावती धुएं के रूप में सती का भौतिक स्वरूप हैं।

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