दरअसल, वैदिक काल में व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर ही किसी वर्ण विशेष में शामिल किया जाता था। उसी तरह भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में जरूर हुआ था लेकिन वे कर्म से क्षत्रिय थे। ठीक उसी तरह जैसे विश्वकर्मा जन्म से क्षत्रिय होने के बावजूद कर्म से ब्राह्मण माने गए।
जन्म से ब्रह्मण, कर्म से क्षत्रिय महर्षि भृगु के प्रपौत्र, वैदिक ॠषि ॠचीक के पौत्र, जमदग्नि के पुत्र, महाभारतकाल के वीर योद्धाओं भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले गुरु, शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ॠषि परशुराम एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे जरूर थे, लेकिन कर्म से वे एक क्षत्रिय थे।
जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या क्षुद्र नहीं होता वैदिक काल में व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर ही किसी वर्ण विशेष में शामिल किया जाता था। मनु स्मृति में भी लिखा हुआ है कि कोई भी मनुष्य जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या क्षुद्र नहीं होता है। कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से ही अपने वर्ण का चयन करता है। इस मान से परशुराम क्षत्रिय थे, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े थे। उनका आचरण और व्यवहार भी क्षत्रियों सा ही रहा है।
योग, वेद, नीति और ब्रह्मास्त्र में पारंगत थे परशुराम
भगवान परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भू-लोक पर रहने का वर दिया।