: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्म के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। : स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें।
: इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए।
: केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।
: प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।
: द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए।
: सायंकाल में तुलसी के आगे घी का दीपक जलाएं।
: इस पूरे दिन मधुर वचन बोलने चाहिए।
एकादशी के दिन क्या न करें : what is forbidden on ekadashi …
1. एकादशी के दिन क्रोध न करें।
2. रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
3. इस दिन स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें।
4. एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से इस दिन पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें।
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5.एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।
6. इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
7. अधिक नहीं बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।
8. एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही एकादशी के दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा आदि तामसिक भोजन से परहेज रखें।
9. इस दिन वृक्ष से पत्ते ना तोड़ें और उनको जल दें।
10. व्रती सहित घर के सभी सदस्यों को झूठ बोलने और गलत काम करने से बचना चाहिए।
11. व्रत के दौरान मन में ईर्ष्या-द्वेष की भावना भी नहीं आनी चाहिए। काम भाव, मदिरा के सेवन व वाद-विवाद से भी बचना चाहिए।
जानकारों के अनुसार एकादशी का व्रत इंद्रियों पर नियंत्रण के खास उद्देश्य के साथ किया जाता है। ताकि मन को निर्मल और एकाग्रचित रखा जाए। वहीं एकादशी के दिन चावल खाना भी निषेध माना गया है।
इसका कारण यह है कि एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था। इसके बाद उनके शरीर का अंश धरती माता के अंदर समा गया।
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मान्यता के अनुसार जिस दिन महर्षि का शरीर धरती में समाया, उस दिन एकादशी थी। कहा जाता है कि महर्षि मेधा ने चावल और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिया। यही वजह कि चावल और जौ को जीव मानते हैं इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाता। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त के सेवन करने जैसा माना जाता है।
एकादशी की आरती : Ekadashi Aarti …
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥