पंडित सुनील शर्मा के अनुसार श्रावण माह ( Sawan Month ) को भगवान शिव ( Lord Shiv ) का प्रिय महीना माना जाता है। इस दौरान की गई भगवान शिव की पूजा भक्तों को कई गुना फल देती है। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस समय भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।
ऐसे में जहां वर्ष 2020 के सावन का माह शुरू हो चुका है। वहीं सावन सोमवार sawan somvar के पहले दिन देश के विभिन्न शहरों के शिवालयों में भक्तों ने नियमों का पालन ( कोरोना संक्रमण लॉकडाउन ) करते हुए भगवान शंकर के दर्शन किए।
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पंडित शर्मा के अनुसार सावन में भगवान शंकर की ही नहीं,बल्कि श्रीराम ( lord Shree Ram ) की पूजा ( sawan ram puja ) का भी अत्यधिक महत्व है, यहीं नहीं सावन में श्रीराम ( lord ram and sawan ) की पूजा भगवान शिव तक को अत्यंत प्रसन्न करती है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही सावन shravan में भगवान राम lord Shri Ram की पूजा ( ram puja ) भी अत्यधिक खास मानी जाती है।
दरअसल मान्यता के अनुसार भगवान राम की पूजा के बिना शिव पूजा अधूरी रहती है और बिना शिव पूजा के राम पूजा ( shravan Ram puja ) अधूरी है। इस विषय में कई मान्याताएं प्रचलित हैं। मसलन कहा जाता है कि रामेश्वरम में शिवलिंग पर जल चढाने से मनुष्य शिव का प्रिय भक्त हो जाता है।
माना जाता है कि सावन माह sawan month में श्रीराम की पूजा भगवान शिव को अत्यधिक प्रसन्न करती है। वहीं इसके चलते भोलेनाथ खुश होकर भक्त को मनचाहा वरदान ( blessing of Shiv ) तक प्रदान करते हैं।
दरअसल मान्यता के अनुसार भगवान शिव श्री राम के इष्ट और श्री राम शिव के इष्ट हैं। वहीं ज्योतिर्लिंगों में से एक रामेश्वरम की स्थापना स्वयं भगवान राम ने अपने हाथों से की है।
तभी तो रामेश्वर तीर्थ की व्याख्याएं भगवान् शिव और श्री विष्णु के मुख से भिन्न भिन्न रूप से इस प्रकार से कथित हैं…
श्री शिवजी कहते हैं , “रामेश्वर तु राम यस्य ईश्वरः” , अर्थात राम जिसके ईश्वर हैं ।
श्री विष्णु जी ( राम जिनके अवतार हैं ) कहते हैं ,”रामेश्वर तु रामस्य यः ईश्वरः”, अर्थात जो राम के ईश्वर हैं ।
सावन के महीने मे भगवान राम की पूजा भी उतना ही महत्व रखती है जितना की शिव पूजा। ऐसे में सावन के महीने मे अधिकतर लोग श्री रामचरितमानस का पाठ कराते हैं। यदि अखण्ङ पाठ नही करा सकते तो एक मास परायण का पाठ भी लाभकारी है।
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पंडित सुनील शर्मा के अनुसार रामचरितमानस के पाठ से भगवान राम की आराधना तो होती ही है साथ ही भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं, भगवान राम की पूजा के बिना शिव पूजा अधूरी रहती है और बिना शिव पूजा के राम पूजा अधूरी है।
सावन के महीने में रामचरितमानस का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि कहा जाता है इसकी रचना स्वयं शंकर जी ने की है। इसका जिक्र तुलसीदास जी ने लिखा है।
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमय सिवा मनभाषा।।
ताते राम चरितमानस वर। धरेउ नाम हियं हेरि हरसि हर।।
(बालकाण्ड में दोहा नंबर(34) चौपाई(6))
अर्थात महेश ने (महादेव जी) इसे रचकर अपने मन में रखा था और अच्छा अवसर देखकर पार्वती जी को कहा। शिव जी ने अपनें मन में विचार कर इसका नाम रामचरितमानस रखा।
भगवान शिव ऐसे होते हैं प्रसन्न:
– शिव का प्रिय मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ व ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ मंत्र का उच्चारण कर शिव को जल चढ़ाने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
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भगवान राम ने स्वयं कहा है : ‘शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा।’
– अर्थात् जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए शिव आराधना के साथ श्रीरामचरितमानस पाठ का बहुत महत्वपूर्ण होता है।
: लिंग-थाप कर विधिवत पूजा, शिव समान प्रिय मोही और न दूजा।।
शिव द्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहु मोही न भावा।।
(लंकाकाण्ड का दोहा नंबर (1) चौपाई(3))
यानि भगवान राम का कहना है भगवान शिव के समान मुझे कोई दूसरा प्रिय नहीं है, शिव मेरे आराध्य देव हैं जो शिव के विपरीत चलकर या शिव को भूलकर मुझे पाना चाहे तो मैं उसपर प्रसन्न नहीं होता। जिसका प्रमाण रामचरितमानस में चंद चौपाई और दोहों में किया गया है।
: राम चरितमानस में गोस्वामी जी ने लिखा है।
शंकर प्रिय मम द्रोही, शिव द्रोही ममदास।। ते नर करही कलप भरी, घोर नरक महुँ वास।।
यानि जो व्यक्ति राम से वैर कर शिव का उपासक अथवा शिव से वैर रखता हो और राम का उपासक बनना चाहता हो तो वह पुण्य नहीं पाप का भागी होता है और घोर नर्क में वास करता है।
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ऐसे समझें भगवान शिव और श्रीराम को…
माना जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 14 वर्ष के वनवास काल के बीच जब जाबालि ऋषि की तपोभूमि मिलने आए तब भगवान गुप्त प्रवास पर नर्मदा तट पर आए। उस समय यह पर्वतों से घिरा था। रास्ते में भगवान शंकर भी उनसे मिलने आतुर थे, लेकिन भगवान और भक्त के बीच वे नहीं आ रहे थे। भगवान राम के पैरों को कंकर न चुभें इसीलिए शंकरजी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया। इसलिए कंकर-कंकर में शंकर बोला जाता है।
जब प्रभु श्रीराम रेवा तट पर पहुंचे तो गुफा से नर्मदा जल बह रहा था। श्रीराम यहीं रुके और बालू एकत्र कर एक माह तक उस बालू का नर्मदा जल से अभिषेक करने लगे। आखिरी दिन शंकरजी वहां स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम-शंकर का मिलन हुआ।
रामरक्षास्त्रोत और शिव का संबंध…
राम चरितमानस के अलावा सावन में रामरक्षास्त्रोत का भी बहुत महत्व माना जाता है। दरअसल श्रावण (सावन) महीने के महीने में जहां भगवान शिव की आराधना का विशेष फल मिलता है, वहीं इस समय भोलेनाथ के ग्यारहवें रुद्रावतार हनुमानजी की भी पूजा की जाती है।
दरअसल हनुमान स्वयं भगवान शिव के अवतार हैं और वे श्रीराम जी के सबसे खास भक्त भी हैं। इन्हीं सब कारणों से सावन में रामरक्षास्त्रोत का प्रभाव भी अत्यधिक बढ़ जाता है। वहीं एक ओर जहां भगवान शिव स्वयं राम को अपना ईश्वर मानते हैं, वहीं उनके अवतार हनुमान जी राम के परम भक्त हैं। ऐेसे में राम की पूजा यानि रामरक्षास्त्रोत का पाठ जो वास्तव में एक कवच माना जाता है। अत्यधिक फल प्रदान करता है।