scriptDak Bam: सोमवार से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा, जानें क्या होता है डाक बम और कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा | dak bam kya hota hai Sawan Kanwar Yatra 2024 starts from Monday know what is Dak Bam khadi kanvad dandi kanvar Kanwar Yatra ka niyam why this considered difficult | Patrika News
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Dak Bam: सोमवार से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा, जानें क्या होता है डाक बम और कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा

Dak Bam: भारत में हर साल दो बार फाल्गुन और सावन महीने में कांवड़ यात्रा निकाली जाती है। इसमें शिव भक्त कांधे पर कांवड़ रखे विभिन्न पवित्र स्थानों से जल लेने जाते हैं और इस जल को शिवजी को अर्पित करते हैं। यह कई प्रकार की होती है और इसके खास नियम हैं तो आइये जानते हैं क्या होता है डाक बम और कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा और उसके नियम क्या है (Kanwar Yatra ka niyam) …

भोपालJul 21, 2024 / 10:25 pm

Pravin Pandey

dak bam kya hota hai

Dak Bam: सोमवार से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा, जानें क्या होता है डाक बम और कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा

Dak Bam: सावन और फाल्गुन में देश भर के शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं। फाल्गुन की कांवड़ यात्रा महाशिवरात्रि और सावन की कांवड़ यात्रा सावन शिवरात्रि तक चलती है। इसमें कठिन व्रत का पालन करते हुए पवित्र नदियों का जल लेकर शिवालयों में पहुंचते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।
मान्यता है कि इससे भगवान शिव आसानी से प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, उसका सब कष्ट दूर करते हैं। भक्त के जीवन में सुख समृद्धि, शांति तरक्की मिलती है। साथ ही पारलौकिक उन्नति भी होती है। यह कांवड़ यात्रा 4 प्रकार की होती है, लेकिन सबसे कठिन डाक कांवड़ यात्रा मानी जाती है, जिसके कांवड़िये को डाक बम कहा जाता है। आइये जानते हैं कितने प्रकार की होती कांवड़ यात्रा है और क्या हैं कांवड़ यात्रा के नियम।

सामान्य कांवड़ यात्रा

सावन और फाल्गुन में भगवा वस्त्र में कांधे पर कांवड़ धरे बोल बम बोलते जल लेने जा रहे शिव भक्तों को देखा होगा। अक्सर ये रूक रूक कर यात्रा करते हैं, इस कांवड़ यात्रा को सामान्य कांवड़ यात्रा कहा जाता है। सामान्य कांवड़िये अपनी यात्रा के दौरान जहां चाहें रूककर आराम कर सकते हैं। यहा कारण है कि यात्रा के रास्ते में लगे पंडालों में ये रूकते हैं और आराम के बाद आगे का सफर शुरू करते हैं।
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डाक कांवड़

डाक कांवड़ यात्रा सबसे कठिन कांवड़ यात्रा में से एक है। डाक कांवड़ यात्रा में यात्री शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बिना रूके चलते रहते हैं। इसे प्रायः 24 घंटे में पूरा करना होता है। इनके लिए मंदिरों में विशेष इंतजाम किए जाते हैं। उनके लिए लोग रास्ता बना देते हैं, ताकि वे शिवलिंग तक बिना रूके चलते रहें। डाक कांवड़ यात्रा कर रहे कांवड़ियों को ही डाक बम कहा जाता है।

यह डाक कांवड़ यात्रा प्रायः कुछ लोग टोली बनाकर किसी वाहन से पूरी करते हैं। इस यात्रा में शामिल लोगों में से एक या दो सदस्य, गंगा जल को हाथ में लेकर लगातार बिना रूके बांस की कांवड़ के साथ दौड़ते रहते हैं। इन सदस्यों के थक जाने के बाद दूसरा सदस्य दौड़ने के लिए आ जाता है और पहला सदस्य अपनी टोली के पास वाहन में बैठ जाता है।

खड़ी कांवड़

इसमें भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। उनकी मदद के लिए कोई न कोई सहयोगी साथ चलता है। जब कांवड़िया आराम करता है तो साथी कांवड़ अपने कंधे पर रखकर खड़ी अवस्था में चलने के अंदाज में कांवड़ को हिलाता रहता है।
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दांडी कांवड़

इसमें भक्त नदी तट से शिवधाम तक दंड देते हुए पहुंचते हैं और कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से मापते हुए पूरी करते हैं। ये बहुत कठिन कांवड़ यात्रा होती है और इसमें महीनों का समय लग जाता है।

भक्त कहां से लेते हैं जल

प्रायः पश्चिम उत्तर प्रदेश और आसपास के शिव भक्त हरिद्वार जल लेने जाते हैं, जो इसे मेरठ के पुरा महादेव या अपने घरों के आसपास के प्रसिद्ध शिवालयों में चढ़ाते हैं। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार, झारखंड के भक्त सुल्तान गंज से जल लेकर 108 किलोमीटर दूर बाबा वैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल के भक्त वहीं के शिव मंदिरों में जल अर्पित करते हैं। बता दें कि 22 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है और पहले दिन ही सोमवार है और इसी दिन से कांवड़ यात्रा 2024 भी शुरू होगी। सड़कें और गलियां शिवमय हो जाएंगी।
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कांवड़ यात्रा के नियम

जानकारों के अनुसार कांवड़ यात्रा के नियम काफी कठिन हैं। यात्रा के दौरान किसी प्रकार का नशा, मांस, मदिरा का सेवन वर्जित है। बिना स्नान के कांवड़ स्पर्श पर रोक है, इस दौरान चर्म का स्पर्श नहीं कर सकते। हो सके तो कांवड़ यात्रा पैदल करें, शिवजी के अभिषेक के पहले वाहन का प्रयोग न करें और चारपाई का तो किसी भी हाल में उपयोग न करें। वृक्ष के भी नीचे कांवड़ नहीं रखनी चाहिए और कांवड़ को कांधे पर ही रखना चाहिए। इसे सिर के ऊपर नहीं रखना चाहिए।

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