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धर्म और अध्यात्म

मन की एकाग्रता से पाएं ध्यान की शक्तियां

ध्यान प्रक्रिया से पूर्व मन की विशुद्धि आवश्यक है। जब तक मन की विकृति का विलय नहीं होता, ध्यान की गहराई तक नहीं पहुंचा जा सकता

Dec 21, 2015 / 08:06 am

सुनील शर्मा

Chinese monk in meditation

Chinese monk in meditation

एकाग्रे मन: सन्निवेशन योगनिरोधवा ध्यान अर्थात् एक आलम्बन पर मन को टिकाना अथवा मन, वचन और शरीर की प्रवृति का निरोध करना ध्यान है। ध्यान की यह परिभाषा जितनी सरल लगती है उतनी ही प्रायोगिक रूप में जटिल प्रतीत होती है।

गहराई से जाना जाए, देखा जाए तो यह न तो अत्यंत सरल है और न ही इतनी जटिल कि व्यक्ति इस ओर प्रेरित भी न हो सके। इस ध्यान की प्रक्रिया का सेतु है व्यक्ति का सहज संतुलन। बिना संतुलन के ध्यान की प्रक्रिया का शुभारम्भ भी नहीं माना जा सकता है। जो व्यक्ति ध्यान करना चाहता है, ध्यान की गहराई में उतरकर साधना का सोपान छूना चाहता है, उसे अपने मन को एक आलम्बन पर केन्द्रित करना पड़ेगा।

जीवन का आवश्यक अंग है ध्यान

ध्यान ऐसी शक्ति है, जिसके बिना व्यक्ति न तो अपने व्यक्तित्व की पहचान बना पाता है न साधना का रहस्य जान पाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से विश्लेषण कर चिंतन किया जाए तो ध्यान जीवन का आवश्यक अंग है। ध्यान की इस प्रक्रिया से व्यक्ति अपने जीवन को नई दिशा दे सकता है।

जागरूक चेतना के प्रतीक ध्यान की आवश्यकता हमें अंतर में तो महसूस होती है लेकिन हम चाहकर भी ध्यान रूपी इस अमृत से अछूते रह जाते हैं। ध्यान न तो दिखावे की वस्तु है और न ही वैचारिक क्रांति का उपक्रम। बल्कि ध्यान है-जीवन में घटित होने वाली सहज अनुभव सिद्ध प्रक्रिया। ध्यान को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को इस अनुभव की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। साधना में रत व्यक्ति जीवन में कुछ पाना चाहता है तो वह है-आध्यात्मिक विकास।

साधना की गहराई का परिचायक ध्यान


ध्यान धर्म की विशुद्ध प्रक्रिया, न कि सम्प्रदाय का लबादा। ध्यानी, योगी इस प्रयोग से उस भूमिका को स्पर्श कर सकता है जहां सम्प्रदाय या परम्परा का भेद गौण हो जाता है। यह साधना की गहराई का परिचायक है। ध्यान प्रक्रिया से पूर्व मन की विशुद्धि आवश्यक है।

जब तक मन की विकृति या उपशम का विलय नहीं होता, ध्यान की गहराई तक नहीं पहुंचा जा सकता है। इस विलय के बाद ही मानसिक संतुलन का अनुभव किया जा सकता है। प्रेक्षा पद्धति के प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ का मत है कि ध्यान अपने आप में शक्ति है, विद्युत है। विद्युत को आप चाहें तो प्रकाश के रूप में काम में ले सकते हैं और आप चाहें तो आग के रूप में काम ले सकते हैं।

सचमुच ध्यान के कुशल शिल्पी के लिए विवेक का होना नितांत आवश्यक है। बिना विवेक के कुशल ध्यानी भी अपने साथ न्याय नहीं कर सकता है। ध्यान से उपजी चेतना, ऊर्जा का उपयोग किस प्रकार हो यह जानना आवश्यक है, जिस पर चलकर व्यक्ति ध्यान के माध्यम से साधना के साथ साथ जीवन के परम आनंद की अनुभूति भी कर सकता है। ध्यान जीवन साधना का वह पथ है जिस पर चलकर व्यक्ति अपने मन की संत्रांस, भय, घुटन व तनाव से मुक्ति पा सकता है।


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