अफीम की पैदावार के लिए मध्यप्रदेश के प्रमुख जिलों मंदसौर, नीमच, रतलाम एवं आगर-मालवा, शाजापुर और उज्जैन से हर साल किसान आवेदन करते हैं, हालांकि केन्द्रीय नीति के अनुसार पट्टों का वितरण किया जाता है। प्रमुख तौर पर मंदसौर, नीमच और राजस्थान से लगे मेवाड़ इलाकों के जिलों को उत्पादन का पट्टा मिलता है। इसके लिए करीब 40 हजार किसानों का सीधा जुड़ाव माना जाता है। मंदसौर-नीमच में तीन खंडों में उत्पादकों को बांटकर अफीम के पट्टों का वितरण कर उत्पादन की अनुमति देते हैं।
– 120 दिनों में तैयार हो जाती है अफीम फसल
– 040 दिन पकने के दौरान के बेहद अहम होते है
– 105 से 120 दिन के दौरान डोडा पकने पर चीरा
– डोडा पकने पर निकलने वाला पदार्थ अफीम होता है
– अफीम निकालने बाद भी पौधा खास, डोडाचूरा बनता है
अफीम उत्पादक किसान रामेश्वर नागदा बताते हैं कि अफीम उत्पादन काफी मुश्किल हो गया है, मौसम के साथ ही इसे लोगों और पशुओं से भी बचाना पड़ता है। पकने के दौरान तो परिवार दिनभर खेत ही रहता है, गांव के कुछ किसान सीसीटीवी लगाकर अपने अपने खेतों की निगरानी की व्यवस्था बना रहे है। वहीं, अफीम काश्तकार संगठन के कई किसान भी अपने अपने खेतों में सीसीटीवी के जरिए अफीम की रखवाली की तैयारी में है, जावरा से लगे क्षेत्रों में बीते वर्ष यह प्रयोग किया गया था, इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
जावरा क्षेत्र में फोटोग्राफी से जुड़ी फर्मो ने कुछ खेतों में सीसीटीवी लगाए हैं, यहां अफीम का उत्पादन होता है। इसी तरह अब नीमच जिले में भी अफीम उत्पादक किसानों ने कैमरा संचालकों की मदद के लिए लोकेशन की जानकारी दी है। सीसीटीवी संचालक धर्मेश सोनी ने बताया कि कुछ फॉर्म हाऊस पर हमने पूर्व में सीसीटीवी लगाए थे, अब अफीम के खेतों के लिए किसान इस बारे में पूछताछ कर रहे हैं। आधा दर्जन से ज्यादा किसानों की अफीम लोकेशन के आधार पर तैयारी कर रहे है, कुछ दिन में कैमरे लगेंगे।