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सर्वपितृ अमावस्या 2019 : कुंडली में है पितृ दोष तो करें यह आसान उपाय वरिष्ठ ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि बदलते युग के साथ मध्यप्रदेश, महाराष्ट सहित भारत के ऐसे कई राज्य हैं, जहां पुत्र/पौत्र न होने पर पत्नी, बेटी, बहन या नातिन ने भी मृतक संस्कार आरंभ कर दिए हैं। इसलिए ये कहना सिर्फ पुरुष ही श्राद्ध या तर्पण कार्य कर सकते है गलत है। शास्त्र में इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि महिलाओं को भी इसका अधिकार दिया हुआ है। जिन पितरों की कन्याएं ही वंश परंपरा में हैं तो वे पितरों के नाम व्रत रखकर उनके दामाद, नाती या ब्राम्हण को बुलाकर श्राद्धकर्म करा सकते हैं।
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6 कारण से होता है श्राद्ध में मरने वालों का फिर से जन्म व मोक्ष पहले जानिए क्या होता है मातामह श्राद्ध वरिष्ठ ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि मातामह श्राद्ध, एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण के रूप में किया जाता है। इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है। यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक नियम है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं किया जाता है। नियम यह है कि मातामह श्राद्ध उसी महिला के पिता के द्वारा किया जाता है जिसका पति व पुत्र जिंदा हो। अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता।
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श्राद्ध 2019 : वो सब जो आप जानना चाहते है सबसे पहले माता सीता ने किया था पिंडदान वरिष्ठ ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि वाल्मीक रामायण में भी सीता द्वारा पिण्ड दान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का प्रसंग आया है। पौराणिक कथानुसार वनवास के समय राम लक्ष्मण सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने हेतु गया धाम पहुंचे वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम लक्ष्मण नगर की ओर चल दिये। उधर दोपहर हो गई थी पिण्ड दान का समय निकला जा रहा था और सीता की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी अपराह्न में तभी दशरथ जी की आत्मा ने पिण्ड दान की मांग कर दी। गया जी में विष्णु पद मंदिर के नजदीक फल्गु नदी के तट पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गई। उन्होंने फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिण्ड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिण्ड दान दे दिया।
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गया में ही क्यों होता है पिंडदान, यहां पढे़ं पूरी जानकारी ये जरूर करें अमावस्या के दिन 1. अमावस्या को घर के आंगन में ईशान कोण में घी का दीपक जलावे शाम को 6:00 से 8:00 बजे के बीच में।
2. जब भी घर में कोई श्राद्ध हो तब तर्पण जरूर करवाएं।
3. अमावस्या को गौ सेवा जरूर करें।
4. दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके प्रार्थना करें।
5. नित्य स्नान के बाद प्रार्थना हे पितृ देवता मुझे क्षमा करें ऐसा करने से आपको बहुत लाभ मिलेगा।
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हमेशा के लिए पितर हो जाएंगे मुक्त, श्राद्ध में करें ये एक उपाय यहां जानिए कौन कर सकता है तर्पणवरिष्ठ ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है। जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं। पंडित द्वारा भी श्राद्ध कराया जा सकता है। तर्पण करते समय एक पीतल के बर्तन में जल में गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ, तुलसी के पत्ते, दूब, शहद और सफेद फूल आदि डाल कर फिर एक लोटे से पहले देवताओं, ऋषियों और सबसे बाद में पितरों का तर्पण करना चाहिए।
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नवरात्रि व दीपावली के समय कई ट्रेन रहेगी कैंसल, यहां पढे़ं पूरी लिस्ट भूलकर नहीं करें तर्पण में ये काम कुश तथा काला तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं तथा चांदी भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई हैं। गाय का दूध और गंगाजल का प्रयोग श्राद्ध के कर्मफल को कई गुना तक बढ़ा देता है। तुलसी बहुत ही पवित्र मानी जाती है इसलिए इसके प्रयोग से पितृ अत्यंत प्रसन्न होते हैं। पितरों के तर्पण में सोना-चांदी, कांसा या तांबे के पात्र का ही उपयोग करना चाहिए। लेकिन लोहे के पात्र अशुद्ध माने गए हैं। इसलिए यथासंभव लोहे के बर्तनो का प्रयोग नहीं ही करना चाहिए।