वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव हो या 2018 का विधानसभा चुनाव, भाजपा ने विकास के नाम पर लड़ा था, जबकि कांगे्रस ने 2018 के चुनाव को किसान आंदोलन, भ्रष्टाचार, बदलाव की बात पर लड़ा। इन दोनों दल के मुद्दों को अनेक मतदाताओं ने नोटा में वोट डालकर नकार दिया। कही-कही तो प्रत्याशी की जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा में गए है। जावरा विधानसभा इसका उदाहरण है। यहां पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. राजेंद्र पांडे 511 वोट से जीते, लेकिन नोटा को 1510 वोट गए।
सपाक्स व जयस का असर नहीं सपाक्स व जयस संगठन बड़ा असर दिखाने में सफल नहीं हो पाई। रतलाम शहर में सपाक्स के हेमंत मेहता को सिर्फ 1156 वोट मिले। सपाक्स तीनों जिलों में जमानत नहीं बचा सकी। इसी प्रकार सैलाना मंे जयस के प्रत्याशी कमलेश डोडियार को 18726 वोट मिले। मंदसौर में सपाक्स के सुनील बंसल को 2543, सुवासरा में सुनील शर्मा को 2230 वोट से संतोष करना पड़ा। इन प्रत्याशियों में सबसे बेहतर वोट सैलाना के जयस के प्रत्याशी कमलोश को मिले। इसी प्रकार शहर में गत चुनाव के मुकाबले नोटा में अधिक वोट आए है। इतना ही नहीं अन्य विधानसभा में भी नोटा को अधिक वोट मिले है। रतलाम शहर को छोड़कर शेष सभी 11 विधानसभा पर 2013 के मुकाबले 2018 में नोटा के वोट कम गिरे है। 2013 में 31797 तो 2018 के चुनाव में तीनों जिलों से मिलाकर 26646 हजार वोट नोटा में गए थे। इस चुनाव में 5333 हजार मतदाताओं ने कम वोट नोटा में डाले है।
इस तरह समझे नोटा की गणित को
विधानसभा-2018 का चुनाव-2013 का चुनाव नीमच-2147-2284
जावद-1941-3464 मनासा-2977-2433
मंदसौर-1815-1845 गरोठ-2476-3307
सुवासरा-2976-3003 मल्हारगढ़-1848-2932
जावरा-1510-1944 सैलाना-3477-4587
आलोट-2430-२५३७ रतलाम ग्रामीण-2320-2970
रतलाम शहर-1529-1473 कुल-26646-31979
अंतर-5333