आचार्य ने कहा कि कर्तव्य निष्ठा से किए गए कार्य कभी निराशा नहीं देते, वरन सदैव आशा, उत्साह और उर्जा से भरते है। कार्य छोटा हो या बडा, कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति के लिए हर कार्य उंचाई देने वाला होता है। कर्तव्य की धरा पर जब सहदयता के फूल खिलते है, तो उनकी सुगंध से मानवता महकती है और महानता दमकती है। कर्तव्य पालन की निष्ठा जिन व्यक्तियों में होती है, वे प्रमाद, अन्याय, और मुफतखोरी जैसा कोई काम नहीं करते। वे कर्तव्य की चादर फैलाकर उसकी छांव में हर प्राणी को सुख देते है।
आचार्य ने बताया कि अधिकारों में जब कर्तव्य का भाव जुडता है, तब अधिकार, उपकार और सहकार बनते है। बिना कर्तव्य के अधिकारों में स्वार्थ लिप्सा, सुविधावाद तथा प्रतिष्ठा की भावना जुडी रहती है। ऐसे अधिकार मानवीय शक्तियों का क्षरण करते है। अधिकारों को चाहे बिना जो कर्तव्य के प्रति समर्पित रहता है, वह तीनों लोकों में पूज्यता प्राप्त करता है। कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति की चार विशेषताएं है, वे अनुशासन में आबद्ध रहते है, उनकी विवेक बुद्धि जागृत रहती है, वे प्रेम के सागर होते है और दीन-दुखियों के प्रति जागरूक रहते है।
आचार्य ने कहा कि दायित्व की अपेक्षा कर्तव्य का महत्व अधिक है। दायित्व नहीं चाहते हुए भी निभाना पडता है, किंतु कर्तव्य का पालन निष्ठा से ही होता है। शांत और अनुत्तेजित दिमाग ही कर्तव्यों का निर्धारण करते है। करोडपति व्यक्ति भी कभी कर्तव्य के प्रति समर्पित नहीं होता, तो रोड पति बन जाता है। कर्तव्य से बडी कोई पूंजी नहीं है। यह पूंजी ही नए पुण्य कमाती है। कर्तव्य की पूंजी को ना तो कोई चोर चुरा सकता है और ना ही इस पर कोई टेक्स लग सकता है। यह पूंजी सेफ और सेल्फ होती है। हर व्यक्ति इस पूंजी से पंूजीपति बनकर अपना और दूसरों का भला कर सकता है।