पहले जाने रेल कर्मचारी कैसे तोड़ता है नियम एक रेलकर्मचारी को वर्ष में तीन बार नि:शुल्क यात्रा के लिए विभाग से पास जारी होता है। इस पास से कर्मचारी भारत में कही भी यात्रा कर सकता है। नियम कहता है कि पास के बाद जब टिकट लेकर यात्रा करते है तो टिकट निरीक्षक को पास दिखाकर स्वयं के हस्ताक्षर के साथ-साथ टीटीई के भी हस्ताक्षर कराना जरूरी होता है। जबकि रेल कर्मचारी पास तो दिखाता है, लेकिन उस पर हस्ताक्षर नहीं करवाता है। बस यही पर ये नियम टूट जाता है। एेसे में पांच माह के लिए जारी पास का उपयोग रेल कर्मचारी कई बार कर लेता है। वातानुकूलित पर 25 रुपए व शयनयान में ये दंड 15 रुपए ही चल रहा है, जबकि पांच वर्षो में यात्री पर न्यूनतम दंड 50 रुपए से बढ़कर 350 रुपए हो गया।
इतने प्रकार के होते है रेलपास पीले रंग का- सामान्य शयनयान में यात्रा के लिए। गुलाबी रंग का- तृतिय श्रेणी वातानुकूलित डिब्बे में यात्रा के लिए। हरे रंग का-द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित में यात्रा के लिए।
सफेद रंग का- सिर्फ अधिकारियों के लिए प्रथम श्रेणी में यात्रा के लिए। ये है इसमे रेलवे की स्थिति भारतीय रेलवे में औसतन एक माह में 3 लाख, पश्चिम रेलवे में करीब 17-18 हजार व मंडल में एक माह में करीब 500 रेलकर्मी इस प्रकार से यात्रा करते है। इसके अलावा करीब के स्टेशन पर पदस्थ होकर अपडाउन करने वाले रेलकर्मी तो पास लेते ही नहीं है। वे बगैर टिकट ही यात्रा करते है। इन कर्मचारियों को रेलवे का वाणिज्य विभाग कोई कारवाई नहीं करता है।
जांच जरूरी, नियम हम नहीं बनाते टीटीई की यह ड्यूटी है कि वह टिकट के साथ-साथ पास की भी जांच करे व नियम टूटता हो तो जुर्माना करे। जहां तक नियम में बदलाव की बात है तो ये मंडल में नहंी बनाए जाते, इस बारे में वरिष्ठ कार्यालय से निर्देश आते है।
– जेके जयंत, जनसपंर्क अधिकारी, रतलाम रेल मंडल