शहर के माणकचौक स्थित प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर प्रदेश ही नहीं पूरे देश से स्वर्ण आभूषण और नकद राशि के शृंगार के लिए विश्वप्रसिद्ध है। इस मंदिर में देश भर के धन्ना सेठ नकदी और सोने चांदी के आभूषण मंदिर के श्रृंगार के लिए भेजवाते हैं। श्रृंगार के बाद उस राशि और आभूषणों को वापस लेकर अपने खजाने में रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे उन्हें सालभर बरकत होती है। इसी मंदिर से श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ दिवाली के दिन कुबेर की पोटली भी वितरित की जाती है, इसमें सिक्का, कौड़ी और अन्य पूजन सामग्री होती है। इसको प्राप्त करने के लिए लोगों की भारी भीड़ लगती है, लेकिन मंदिर प्रबंधन ने बढ़ती भीड़ के चलते इसे नहीं बंटना का निर्णय लिया है।
इससे भक्तों को भारी निराशा है। कुबेर की पोटली लेने के लिए दूर-दूर से लोगा मंदिर के सामने कतारबद्ध होकर खड़े रहते हैं। कुबेर पोटली प्राप्त करने के लिए भक्त यहां बैंगलुरू, कर्नाटक, दिल्ली, महाराष्ट्र आदि स्थानों से पहुंचते है। मंदिर पर बंटने वाली कुबेर पोटली से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। दीपोत्सव पर 60-70 हजार महिलाएं लम्बी-लम्बी कतार में खड़ी नजर आती है। इस साल मंदिर पर मुहूर्त में पोटली का वितरण नहीं होगा। इसकी सूचना से ही भक्तों में निराशा छा गई है। कई भक्त तो मंदिर पहुंचकर इसका कारण जानने का प्रयास कर रहे हैं।
पुजारी ने कहा दिन भर बांटना संभव नहीं – महालक्ष्मी मंदिर के पुजारी संजय ने बताया कि कुबेर पोटनी प्राप्त करने के लिए रतलाम जिले सहित अन्य स्थानों से भी भक्त मंदिर पर आने लगे हैं। पिछले साल भी अनुमानित 65-70 हजार के करीब बांटी गई थी, पूजन कर नवरात्र से पोटली बनाई जाती है। इस साल पूजा पाठ के लिए तैयार की है, आम लोगों को नहीं बांट पाएंगे। प्रशासन ने बांटने के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन उनका कहना है कि मुहूर्त में ना बांटते हुए लगातार बांटी जाए यह संभव नहीं है, क्योंकि कतार में बच्चे, महिला-पुरुष सभी को देना पड़ती है। मंदिर पर हर साल की तरह दीपोत्सव धूमधाम से मने इसके लिए शृंगार, पूजन में पूरा प्रयास किया जा रहा है। पोटली एक दिन में चार मुहूर्त में बांटी जाती रही थी, लेकिन प्रशासन का कहना है कि नियमित रूप से बांटी जाए, जो संभव नहीं है।
रतलाम तहसीलदार गोपाल सोनी ने बताया कि जो परम्परा है वह चलती रहे, कुबेर पोटली बांटने के लिए प्रशासन ने पहले भी नहीं कहा बांटो और आज भी नहीं कह रहा की ना बांटो। हम केवल यह चाहते है कि कोई समय फिक्स न किया जाए। दिन भर बांटे, पिछले साल भी लम्बी लाइन हो गई, धक्का-मुक्की शुरू हो गई। हम चाहते है कि व्यवस्था नहीं बिगड़े, जो व्यक्ति जिस समय लेने आ रहा उसे दे दो, अब निर्णय मंदिर पुजारी का है।