scriptVIDEO अनंत चौदस पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत नियम | Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi | Patrika News
रतलाम

VIDEO अनंत चौदस पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत नियम

Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi : महर्षि वेद व्यास जी ने गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेश जी ने भी लगातार 10 दिनों तक इस कथा अक्षरश: लिखा। दस दिनों के बाद जब वेद व्यास जी ने गणेश जी को छुआ तो पाया कि उनका शरीर का तापमान बढ़ गया है। इसके बाद वेदव्यास जी ने उन्हें तुरंत समीप के कुंड में ले जाकर उनके तापमान को शांत किया।

रतलामSep 12, 2019 / 11:19 am

Ashish Pathak

Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi

Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi

रतलाम। Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi : भगवान विष्णु जी को समर्पित अनंत चतुर्दशी का पर्व आज है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चौदस का ये पर्व शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी दो शब्दों के योग से बना है। इसमें पहला शब्द अनंत है जिसका अर्थ भगवान विष्णु जी के उस अवतार से है जिसका न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत। जबकि दूसरा शब्द चतुर्दशी है। यह चौदस तिथि को दर्शाती है। इसलिए इस पर्व को कई स्थानों में चौदस भी कहते हैं। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कही।
MUST READ : गणेश विसर्जन करें अपनी राशि अनुसार, साल भर रहेगी भगवान की कृपा

ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने बताया कि इस शुभ दिन के अवसर पर विशेष मुहूर्त में व्रत रखकर भगवान विष्णु जी की विशेष पूजा होती है। इस पूजन के बाद अनंत सूत्र बांधने का बड़ा महत्व है। ये अनंत सूत्र कपास या रेशम के धागे से बने होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना के बाद इन्हें हाथ पर बांधा जाता है। मान्यता है कि अनंत सूत्र बांधने से भगवान अनंत हमारी रक्षा करते हैं और सांसारिक वैभव प्रदान करते हैं। अनंत चतुर्दशी पर सुख-समृद्धि और संतान की कामना से व्रत भी रखा जाता है।
MUST READ : पितृपक्ष 13 सितंबर से, श्राद्ध के नियम व इससे जुड़ी महत्वपूर्ण तिथि


ये है तिथि का नियम
ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने बताया कि अनंत चतुर्दशी का व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाए जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाण्ड दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।
MUST READ : क्या है पिंडदान और तर्पण, यहां पढ़ें श्राद्ध करने की पूरी विधि

Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi
अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि


ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार अनंत चतुर्दशी पर्व और व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। जब पांडव पुत्र राज्य हारकर वनवास काट रहे थे उस समय भगवान श्री कृष्ण ने वन में उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन सुनाया था। कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ में 14 लोकों की रक्षा और पालन के लिए भगवान विष्णु चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, इससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। यह पूजन दोपहर में संपन्न होता है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा के महत्व का वर्णन मिलता है।
MUST READ : गया में ही क्यों होता है पिंडदान, यहां पढे़ं पूरी जानकारी

पौराणिक कथाओं में गणेश विसर्जन
ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने बताया कि हिन्दू धर्म ग्रंथों में गणेश विसर्जन का विशेष उल्लेख मिलता है। गणेश जी ने ही महाभारत ग्रंथ को लिखा था। ऐसा कहते हैं कि महर्षि वेद व्यास जी ने गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेश जी ने भी लगातार 10 दिनों तक इस कथा अक्षरश: लिखा। दस दिनों के बाद जब वेद व्यास जी ने गणेश जी को छुआ तो पाया कि उनका शरीर का तापमान बढ़ गया है। इसके बाद वेदव्यास जी ने उन्हें तुरंत समीप के कुंड में ले जाकर उनके तापमान को शांत किया। ऐसा कहते हैं कि गणेश विसर्जन के निमित्त गणपति महाराज को शीतल किया जाता है।
MUST READ : आज से बुध का राशि परिवर्तन, बाजार से दूर होगी मंदी

Anant Chaudas Shubh Muhurat Puja Vidhi
गणेश विसर्जन की विधि


गणेश विसर्जन से पहले गणेश जी की विधिवत पूजा करें।

पूजा के समय उन्हें मोदक एवं फल का भोग लगाएँ।
इसके साथ ही गणेश जी की आरती करें।

अब गणेश जी से विदा लेने की प्रार्थना करें।

पूजा स्थल से गणपति महाराज की प्रतिमा को सम्मान-पूर्वक उठाएं।

पटरे पर पर गुलाबी वस्त्र बिछाएँ।
प्रतिमा को एक लकड़ी के पटे पर धीरें से रखें।

लकड़ी के पटरे को पहले गंगाजल से उसे पवित्र ज़रुर करें।

गणेश मूर्ति के साथ फल-फूल, वस्त्र एवं मोदक की पोटली रखें।
एक पोटली में थोड़े चावल, गेहूं और पंचमेवा रखकर पोटली बनाएँ उसमें कुछ सिक्के भी डाल दें।

उस पोटली को गणेश जी की प्रतिमा के पास रखें।

अब गणेश जी की मूर्ति को किसी बहते हुए जल में विसर्जन कर दें।
गणपति का विसर्जन करने से पहले फिर से उनकी आरती करें।

आरती के बाद गणपति से मनोकामना पूर्ण करने का अनुरोध करें।
गणपति महाराज की पूजा के दौरान रखें ये सावधानियाँ
गणपति महाराज की पूजा के दौरान तुलसी का प्रयोग बिलकुल भी ना करें।
पूजा में गणपति की ऐसी प्रतिमा का प्रयोग करें, जिसमें गणपति भगवान की सूंड बाएं हाथ की ओर घूमी हो।

गणेश जी को मोदक और मूषक प्रिय हैं, इसलिए ऐसी मूर्ति की पूजा करें जिसमें मोदक और मूषक दोनों हों।

Hindi News / Ratlam / VIDEO अनंत चौदस पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत नियम

ट्रेंडिंग वीडियो