कविता और पदमा ने अपनी कड़ी मेहनत और अपार आत्मविश्वास के साथ यह साबित कर दिया कि यदि इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता। इन दोनों बहनों का सफर गरीबी से शुरू होकर मेडिकल के क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा।
उनके पिता, जो दूध बेचकर परिवार का पालन करते थे, ने अपने संघर्षों के बावजूद अपनी बेटियों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। यही वजह थी कि उनकी बेटियां न केवल अपनी कक्षाओं में टॉपर रहीं, बल्कि मेडिकल क्षेत्र में अपना नाम रोशन करने में भी सफल रहीं।
संघर्ष और समर्पण काम आया
कविता की शिक्षा पूरी करने के लिए उनके पिता ने अपनी जमीन बेच दी, ताकि उनकी बेटी का सपना पूरा हो सके। यह एक ऐसा कड़ा कदम था, जो किसी भी पिता के लिए अपने बच्चों के लिए सच्चे प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इन पैसों से कविता ने विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की और फिर जयपुर में रहकर भारतीय मेडिकल परीक्षा की तैयारी की। हाल ही में, उन्होंने एमसीआई परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सरकारी डॉक्टर बनने का सौभाग्य हासिल किया। रावल समाज और देवगढ़ में यह पहली बार हुआ कि एक साथ दो बहनें डॉक्टर बनीं। यह उपलब्धि उनके परिवार के लिए गर्व का कारण बनी और पूरे क्षेत्र में खुशी का माहौल बना। उनके माता-पिता की आंखों में आंसू थे, लेकिन ये आंसू गर्व और खुशी के थे, क्योंकि उन्होंने अपनी बेटियों को डॉक्टर बनने के उनके सपनों को पूरा होते देखा।
गुरु का रहा योगदान
कविता और पदमा के गुरु, राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल डालूराम सालवी ने बताया कि उन्होंने पिछले 15 सालों में इन दोनों बहनों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने हमेशा इन्हें डॉक्टर बनने की प्रेरणा दी और जब भी जरूरत पड़ी, पूरी मदद की। उनका सही मार्गदर्शन और मेहनत का फल आज सबके सामने है।
सफलता का राज
कविता और पदमा ने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और भाई को दिया। साथ ही, उन्होंने बताया कि सही मार्गदर्शन और शिक्षा से किसी भी लड़की को सफलता के शिखर तक पहुंचाया जा सकता है।
शिक्षा का पहला कदम
कविता और पदमा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देवगढ़ स्थित विद्या निकेतन स्कूल और श्रीजी पब्लिक स्कूल से की। इसके बाद, दोनों बहनें नीट की तैयारी करने के लिए कोटा चली गईं, जहां उन्होंने दो साल तक कड़ी मेहनत की। इस दौरान पदमा का चयन नीट में हो गया और वह वर्तमान में मेडिकल कॉलेज बरेली (यूपी) में एमबीबीएस कर रही हैं। वहीं, कविता ने विदेश से एमबीबीएस करने का निर्णय लिया, लेकिन आर्थिक स्थिति की वजह से कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पिता भंवरलाल रावल ने कहा, ’’मेरे लिए यह एक सपने के समान था कि मेरी बेटियां डॉक्टर बनें। मेरी पत्नी और मैंने मिल कर अपनी बेटियों की शिक्षा में किसी प्रकार की कोई कसर नहीं छोड़ी। आज मुझे गर्व है कि उन्होंने इस सपने को सच कर दिखाया।’’