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मान्यताओं के अनुसार मां शाकभरी को पूरे नौ दिनों तक नित्य हरी
सब्जियों का ही भोग लगाया जा रहा है। विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार दैत्य दुर्गमासुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया। वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएं लुप्त हो र्गइं। चौतरफा हाहाकार मच गया। यज्ञादि अनुष्ठान बंद हो गए और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। जिसके कारण भयंकर अकाल पड़ा। किसी भी प्राणी को जल नहीं मिला जल के अभाव में वनस्पति भी सूख गई। अत: भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे।
दुर्गमासुर की देवों से भयंकर लड़ाई हुई। जिसमें देवताओं की हार हुई। अत: दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवता शिवालिक पर्वतमालाओं में जगदबा का ध्यान, जप, पूजन और स्तुति करने लगे। उनके द्वारा जगदबा की स्तुति करने पर दुर्गमासुर की देवों से भयंकर लड़ाई हुई। जिसमें
देवताओं की हार हुई। अत: दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवता शिवालिक पर्वतमालाओं में जगदबा का ध्यान, जप, पूजन और स्तुति करने लगे। उनके द्वारा जगदबा की स्तुति करने पर मां पार्वती आयोनिजा के रूप में प्रकट हुई।
शाक-सब्जियां से बनाई माता की प्रतिमा
दुर्गमासुर के साथ देवी का घोर युद्ध हुआ अंत में दुर्गमासुर मारा गया। भगवती परमेश्वरी ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किए। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। मां शाकभरी सेवा समिति के महेश पटेल, मनीष पटेल सहित अन्य ने बताया कि नौ दिनों तक मां शाकभरी की पूजन की जाती है। जिसमें शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है। शाक-सब्जियां से माता की प्रतिमा बनाई गई है। अष्टमी हवन पर भी पांच प्रकार की सब्जियों को बारिक काटकर उसका उपयोग हवन में किया जाएगा।