राजनांदगांव. जिले के डोगरगढ़ पहाड़ में स्थित है देवी बम्लेश्वरी मंदिर में शुक्रवार से चैत्र नवरात्रि पर आस्था का मेला लगेगा। यहां दूर-दराज क्षेत्रों से लोग देवी दर्शन के लिए आते हैं। देवी भक्तों की मनोकामना पूरी करती है।
इतिहास काफी पुराना छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजित डोंगरगढ़ की देवी बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है। वैसे तो साल भर देवी के दरबार में भक्तों का रेला लगा रहता है लेकिन लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली कामावती नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है। इस बार नवरात्रि में ऊपर मंदिर में 6 हजार और नीचे मंदिर में 8 हजार मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित किए जाते हैं।
नगरी के राजा ने मंदिर की स्थापना की थी
वैसे तो देवी बम्लेश्वरी के मंदिर की स्थापना को लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है पर जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को मां बगलामुखी ने सपना दिया था और उसके बाद डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर कामाख्या नगरी के राजा कामसेन ने मां के मंदिर की स्थापना की थी।
युद्ध के मैदान में पहुंची एक कहानी यह भी है कि राजा कामसेन और विक्रमादित्य के बीच युद्ध में राजा विक्रमादित्य के आह्वान पर उनके कुल देव उज्जैन के महाकाल कामसेन की सेना का विनाश करने लगे और जब कामसेन ने अपनी कुल देवी मां बम्लेश्वरी का आह्वान किया तो वे युद्ध के मैदान में पहुंची। उन्हें देखकर महाकाल ने अपने वाहन नंदी से उतरकर देवी की शक्ति को प्रणाम किया और फिर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ।
पहाड़ी में देवी की प्रतिमा प्रकट हो गई इसके बाद भगवान शिव और मां बम्लेश्वरी अपने-अपने लोक को विदा हुए। इसके बाद ही मां बम्लेश्वरी के पहाड़ी पर विराजित होने की भी कहानी है।यह भी कहा जाता है कि कामाख्या नगरी जब प्रकृति के तहत नहस में नष्ट हो गई थी तब डोंगरी में मां की प्रतिमा स्व विराजित प्रकट हो गई थी। सिद्ध महापुरूषों और संतों ने अपने आत्मबल और तत्वज्ञान से यह जान लिया कि पहाड़ी में देवी की प्रतिमा प्रकट हो गई है और इसके बाद मंदिर की स्थापना की गई।
राजाओं द्वारा मंदिर की देखरेख प्राकृतिक रूप से चारों ओर से पहाड़ों में घिरे डोंगरगढ़ की सबसे ऊंची पहाड़ी पर देवी का मंदिर स्थापित है। पहले देवी के दर्शन के लिए पहाड़ों से ही होकर जाया जाता था लेकिन कालांतर में यहां सीढिय़ां बनाई गईं और के मंदिर को भव्य स्वरूप देने का काम लगातार जारी है। पूर्व में खैरागढ़ रियासत के राजाओं द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती थी।
रोप वे की भी व्यवस्था बाद में राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने ट्रस्ट का गठन कर मंदिर के संचालन का काम जनता को सौंप दिया। अब मंदिर में जाने के लिए रोप वे की भी व्यवस्था हो गई है और मंदिर ट्रस्ट अस्पताल धर्मशाला जैसे कई सुविधाओं की दिशा में काम कर रहा है।
रात में नहीं मिलेगी रोपवे की सुविधा देवी बम्लेश्वरी मंदिर परिसर में 29 फरवरी को रोप-वे की ट्रॉली चट्टान से टकराकर पहाड़ी पर गिर गई थी। इस वजह से प्रशासन ने रोप-वे संचालन के लिए समय निर्धारित किया है। सुबह 7 से रात्रि 8 बजे के बीच ही संचालन होगा। दोपहर में एक घंटे तक रोप-वे को बंद रखा जाएगा। इस तरह रात्रि में रोप-वे की सुविधा नहीं मिलेगी।
दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध देवी बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। एक मंदिर 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है। ऊपर विराजित मां और नीचे विराजित मां को एक दूसरे की बहन कहा जाता है। ऊपर वाली मां बड़ी और नीचे वाली छोटी बहन मानी गई है।सन 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था।
वैभवशाली कामाख्या नगरी देवी बम्लेश्वरी देवी शक्तिपीठ का इतिहास लगभग 2200 वर्ष पुराना है। डोंगरगढ़ से प्राप्त भग्रावेशों से प्राचीन कामावती नगरी होने के प्रमाण मिले हैं। पूर्व में डोंगरगढ़ ही वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी।
विक्रमादित्य की कुल देवी देवी बम्लेश्वरी मंदिर के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट तथ्य तो मौजूद नहीं है, लेकिन मंदिर के इतिहास को लेकर जो पुस्तकें और दस्तावेज सामने आए हैं, उसके मुताबिक डोंगरगढ़ का इतिहास मध्यप्रदेश के उज्जैन से जुड़ा हुआ है। देवी बम्लेश्वरी को मध्यप्रदेश के उज्जैयनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुल देवी भी कहा जाता है।
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