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रायपुर

गांव से निकलकर छॉलीवुड फिल्मों में यूट्यूबर्स ने बनाई नई पहचान, मोबाइल के सहारे बनाते थे वीडियो….अब बड़े पर्दों पर बिखेर रहे जलवा

Raipur News: यूट्यूब अब कॅरियर के तौर पर देखा जाने लगा है। अब उन्हें देखने के लिए बड़े पर्दों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है।

रायपुरSep 20, 2023 / 05:20 pm

Khyati Parihar

YouTubers created a new identity in Chollywood films

छॉलीवुड फिल्मों में यूट्यूबर्स ने बनाई नई पहचान

रायपुर। Chhattisgarh News: यूट्यूब अब कॅरियर के तौर पर देखा जाने लगा है। इसकी वजह है कि जो कभी यूट्यूब पर दिखते थे, अब उन्हें देखने के लिए बड़े पर्दों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। इनमें से एक नाम हैं अमलेश नागेश। बतौर लीड उनकी पहली फिल्म ‘ले सुरु होगे मया के कहानी’ ने बंपर कमाई की। करीब 22 करोड़ के कलेक्शन के साथ फिल्म ने कई रेकॉर्ड बनाए।
वैसे तो उनका सफर बेनाम बादशाह में ‘गेस्ट अपीरियंस’ और ‘डॉर्लिंग प्यार झुकता नहीं’ में सेकंड लीड हीरो के तौर पर शुरू हुआ था। आगे वे खुद की लिखी फिल्म गुईयां में नजर आएंगे। इसके अलावा, उन्होंने टीना टप्पर भी साइन की है। इसी तरह यूट्यूब की दुनिया में एक और नाम हैं आनंद मानिकपुरी। उन्होंने नॉर्मल कैमरे से ही फिल्म शूट कर दी। कम लागत में बनी फिल्म सरई ने अच्छी खासी कमाई की। अब वे एक और फिल्म की तैयारी में जुट गए हैं।
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यूट्यूबर्स विलेज में सर्वसुविधायुक्त स्टूडियो ‘हमर फ्लिक्स’

रा जधानी से लगे एक गांव तुलसी नेवरा को यूट्यूबर्स विलेज कहा जाता है। यहां के युवा वीडियो मेकिंग और एक्टिंग तो कर लेते हैं। लेकिन, उन्हें वीडियो एडिटिंगके लिए सुविधा नहीं होने के कारण रायपुर आना पड़ता था। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने उनके लिए विशेष स्टूडियो ‘हमर फ्लिक्स’ बनवा दिया। स्टूडियो के माध्यम से यहां के युवाओं के टैलेंट और उनके माध्यम से अन्य युवाओं को प्रोत्साहन मिलेगा। यहां 15 लाख रुपए की लागत से डिजिटल स्किल सेंटर भी बनाया जाएगा, जहां यूट्यूब और सोशल मीडिया से जुड़े युवा डिजिटल मार्केटिग, ग्राफिक डिजाइनिंग, एसईओ जैसे स्किल्स सीख पाएंगे।
तुलसी गांव का हमर फ्लिक्स स्टूडियो यूट्यूबर्स और क्रिएटर्स के लिए आवश्यक उपकरण से लैस है। अत्याधुनिक कैमरे, ड्रोन कैमरे, हाइएंड कंप्यूटर जैसे उपकरण जिला प्रशासन ने उपलब्ध कराए हैं। शूटिंग के साथ-साथ एडिटिंग के लिए भी सॉफ्टवेयर्स की व्यवस्था की गई है। स्टूडियो में ऑडियो लैब भी बनाया गया है, जहां ऑडियो मिक्सर सॉफ्टवेयर और उपकरण से क्रिएटर्स आसानी से ऑडियो रिकॉर्डिंग और मिक्सिंग कर पाएंगे। साथ ही पॉडकास्टिंग भी कर पाएंगे। 25 लाख की लागत से इस स्टूडियो को तैयार किया गया है।
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फिल्मों में इसलिए आ रहे क्रिएटर्स

मेकर्स का मानना है कि क्रिएटर्स की अपनी फैन फॉलोइंग होती है। लोग उन्हें मोबाइल पर देखते रहते हैं। दर्शकों में उनकी एक छवि बनी रहती है। फिल्म में लेने से वही लोग उन्हें देखने आते हैं जो उनके वीडियो देख चुके होते हैं। अमलेश, आनंद, किशन-पूनम इसके उदाहरण हैं। क्रिएटर्स को भी बड़े पर्दे की तलाश होती है। दोनों की जरूरतें पूरी होती है और फायदा भी।
महिलाओं पर टिकी छत्तीसगढ़ी फिल्मों की सफलता

छ त्तीसगढ़ी फिल्मों का इतिहास देखें तो इसमें वही फिल्में हिट रही हैं, जिनमें लव स्टोरी है या फैमिली ड्रामा। सस्पेंस और थ्रिलर फिल्में यहां की महिलाएं नहीं देखतीं। छत्तीसगढ़ी फिल्मों की सफलता महिला दर्शक पर टिकी होती हैं। हमारी फिल्मों का मार्केट छोटा है। सिंगल स्क्रीन की कमी है। आजकल एवरेज फिल्मों की लागत एक से डेढ़ करोड़ हो गई है। बड़ी चुनौती होती है रिकवरी होना। इसलिए हम एक्सपेरिमेंट करने में डरते हैं। हमारी फिल्मों में रिपीट वैल्यू मायने रखती है। अगर हम प्रेम कहानी और पारिवारिक ड्रामा के अलावा प्रयोग करें तो लोग एक बार ही देखेंगे।
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शूटिंग के दौरान ही रिलीज डेट एनाउंस करना सही नहीं

छ त्तीसगढ़ी फिल्मों की रिलीज के दौरान सेंसर सर्टिफिकेट का देर से मिलना कॉमन फैक्टर है। इसका कारण क्या है? सबसे बड़ा कारण ये है कि फिल्म कंप्लीट होने के पहले या शूटिंग के दौरान ही रिलीज डेट अनाउंस कर देना। रिलीज की तारीख घोषित करने के बाद पोस्ट प्रोडक्शन जैसे एडिटिंग, डबिंग, बीजीएम वगैरह समय पर पूरा नहीं हो पाता। जब फिल्म सेंसर में स्क्रीनिंग के लिए जाती है और सेंसर वालों को कुछ भी खटकता है तो वे सुधार के लिए बोलते हैं। सेंसर के पास दूसरी फिल्में भी रहती हैं।
हमारी इंडस्ट्री को बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से खतरा

छ त्तीसगढ़ी सिनेमा अपने 23वें वर्ष में कदम रख चुका है बावजूद इसके चुनौतियों का सामना ठीक उसी तरह कर रहा है जैसे 21/22 साल का एक नौजवान जीवन में खुद को स्टेबल करने के लिए करता है। हमारे छालीवुड की सबसे बड़ी चुनौती अपने ही राज्य में अपनों के द्वारा अनदेखा किया जाना, जहां छत्तीसगढ़ सरकार के कुछ अधिकारी बॉलीवुड को सिर पर बैठा के उन्हें और उनकी फिल्मों को सरकारी लाभ मुहैया करवा रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री को इस कदर अनदेखा करते हैं जैसे इस इंडस्ट्री का कोई अस्तित्व ही न हो।
इसका एक और कारण है हमारे इंडस्ट्री में बैठे ऊपर तबके के कुछ सीनियर जो केवल अपने फायदे के लिए उन अधिकारियों के हां में हां मिलाते रहते हैं। इसके चजते थोड़ा बहुत जो छॉलीवुड के हित में लाभ आता भी है तो वह ऊपर ही सफाचट हो जाता है। इस इंडस्ट्री में चुनौती बाहर नहीं, अंदर के लोगों से ज्यादा है।

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