scriptCG Cinemaऐसी दो छत्तीसगढ़ी फिल्में जिसे नहीं मिल रहे थे सिनेमाघर, फिर बटोरी सुर्खियां | These Chhattisgarhi films were not getting theaters for release raipur | Patrika News
रायपुर

CG Cinemaऐसी दो छत्तीसगढ़ी फिल्में जिसे नहीं मिल रहे थे सिनेमाघर, फिर बटोरी सुर्खियां

Raipur News: कहि देबे संदेस से शुरू हुआ छत्तीसगढ़ी सिनेमा आज काफी सुर्खियां बटोर रहा है। यहां की फिल्मों के नाम अब नेशनल स्तर पर गूंजने लगे हैं।

रायपुरJun 29, 2023 / 04:28 pm

Khyati Parihar

These Chhattisgarhi films were not getting theaters for release

ऐसी दो छत्तीसगढ़ी फिल्में जिसे नहीं मिल रहे थे सिनेमाघर, फिर बटोरी सुर्खियां

CG News: रायपुर पत्रिका @ ताबीर हुसैन। कहि देबे संदेस से शुरू हुआ छत्तीसगढ़ी सिनेमा आज काफी सुर्खियां बटोर रहा है। यहां की फिल्मों के नाम अब नेशनल स्तर पर गूंजने लगे हैं। हालांकि आज भी कस्बों और गांवों में सिंगल स्क्रीन नहीं हैं। यही वजह है कि फिल्मकारों को संघर्ष करना पड़ रहा है। गुजरे दौर की करें तो ऐसे भी मौके आए जब छत्तीसगढ़ी फिल्मकारों को थिएटर नहीं मिल रहे थे। सिनेमाघर वालों को छत्तीसगढ़ी फिल्मों पर यकीन नहीं था। आज दो ऐसी फिल्मों का जिक्र करेंगे जिन्हें रिलीज में ही परेशानी आई थी।
यह भी पढ़ें

पटवारी को किया निलंबित, एसडीएम, तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक को थमाया कारण बताओ नोटिस, जानिए पूरा मामला

पोस्टर लेकर काटते थे थिएटर्स के चक्कर

मोर छइयां भुंईया बनाने वाले सतीश जैन बताते हैं, कहि देबे संदेस और घरद्वार नहीं चल पाई थी। इसलिए एग्जीबिटर्स को इस फिल्म के प्रति कोई उत्साह नहीं था। मैं पिताजी के साथ पोस्टर लेकर टॉकीजों के चक्कर काटा करता था। काफी मिन्नत करने के बाद रायपुर के बाबूलाल टॉकीज वाले 40 हजार रुपए साप्ताहिक रेंट में फिल्म लगाने राजी हुए। जबकि उस वक्त किराया 20 से 25 हजार साप्ताहिक हुआ करता था। बिलासपुर में 11 टॉकीज थी। कोई तैयार नहीं हुआ। हमने एक बंद पड़ी टॉकीज मनोहर को खुलवाकर लगाई। लेकिन जब फिल्म चल पड़ी तो हर कोई चाहने लगा कि उसके यहां लगाई जाए।
यह भी पढ़ें

टाटा ट्रस्ट व स्वास्थ्य विभाग ने मिलकर 23 शहरी PHC को बनाया मॉडल हमर अस्पताल, लोगों को मिल रहा फायदा

नागपुर में 50 दिन, मड़ई-मेले में भी कमाल

साल 2008 ऐसा दौर था जब सीजी सिनेमा इंडस्ट्री हिचकोले खा रही थी। तीजा के लुगरा रिलीज के लिए तैयार थी लेकिन इसे लगाने कोई राजी नहीं था। जो लगाना चाहते थे वे हाई-फाई रेंट मांग रहे थे। डायरेक्टर जी. विजय ने बताया, हमने इसे नागपुर में रिलीज किया। वहां फिल्म ने 50 दिन पूरे किए। शुरुआती दिनों में ही जब फिल्म की रिपोर्ट अच्छी आई तो रायपुर व अन्य शहरों में मांग बढ़ने लगी। सबसे खास बात मेले-मड़ई में फिल्म ने बेहतर कलेक्शन किए। 2006 तक मेलों में फिल्में चलने का दौर थम गया था जिसे इस फिल्म ने जिंदा किया। विजय ने बताया कि लकी रंगशाही की बतौर डिस्ट्रीब्यूटर पहली फिल्म भी तीजा के लुगरा थी।

Hindi News / Raipur / CG Cinemaऐसी दो छत्तीसगढ़ी फिल्में जिसे नहीं मिल रहे थे सिनेमाघर, फिर बटोरी सुर्खियां

ट्रेंडिंग वीडियो