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चौरसिया कॉलोनी और भैरवनगर में निगम का चला बुलडोजर, कब्जा हटा Rath Yatra 2023 : इस खुशी में 20 जून को रथयात्रा निकाली जाएगी। दरअसल, शहर के जगन्नाथ मंदिरों में पूर्णिमा पर देव स्नान के साथ रथयात्रा महोत्सव की शुरुआत हो गई है। परंपरा के तहत अधिक स्नान करने की वजह से भगवान की तबियत खराब हो गई है।
Rath Yatra 2023 : शनिवार को मीडिया से बातचीत में गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर( Jaganath Mandir) के पुरंदर मिश्रा ने बताया कि बीमार होने के चलते पिछले भगवान सोमवार से एकांतवास में चले गए है। विधि-विधान से पूजा करने के साथ भगवान की सेहत का खास ख्याल रखा जा रहा है। इस बीच उन्हें जड़ी-बूटियों से काढ़ा बनाकर दिया जा रहा है।
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मंत्री कवासी लखमा का चैलेंज, कहा- चार साल में एक भी धर्मांतरण हुआ है तो बता दें.. छोड़ दूंगा राजनीति Rath Yatra 2023 : जगन्नाथ मंदिरों में रथयात्रा से पहले नेत्रोत्सव मनाया जाता है। इसमें भगवान की सेहत में सुधार होता है और उनकी आंखें खुलने लगती हैं। जब वे पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं, तो वे सैर पर निकलते हैं। यात्रा के 9 दिन बाद वे अपने मौसी के घर जाते हैं। इसमें प्रभु जगन्नाथ के साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रहतीं हैं।
3 साल बाद इस बार धूमधाम से रथयात्रा Rath Yatra 2023 : कोरोना संक्रमण के चलते रायपुर शहर समेत प्रदेशभर में 3 वर्ष से रथ यात्रा महोत्सव सादगी के साथ मनाया जा रहा है। इस बार संक्रमण का कोई खतरा नहीं है। लिहाजा मठ मंदिरों में धूमधाम से रथ यात्रा महोत्सव मनाने की तैयारी चल रही हैं। मंदिरों में रथों की आकर्षक सजावट की जा रही है। 20 तारीख को शहर में धूमधाम से रथ यात्रा निकाली जाएगी।
सदर बाजार में पुजारी 8 पीढ़ी से निभा रहे रस्म Rath Yatra 2023 : सदरबाजार स्थित जगन्नाथ मंदिर का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है। इस मंदिर की देखभाल पुजारी परिवार पिछली आठ पीढ़ियों से कर रहा है। यहां धूमधाम से उत्सव मनाने की तैयारी चल रही हैं। पुजारी परिवार से मिली जानकारी के मुताबिक रथ की सारी सजा का काम लगभग पूरा हो चुका है। 19 जून को नेत्रोत्सव मनाया जाएगा।
शहर में 500 साल पुराना है रथ यात्रा का इतिहास Rath Yatra 2023 : पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में लगभग 500 साल पुराना जगन्नाथ मंदिर है। इस मंदिर का संचालन ऐतिहासिक दूधाधारी मठ ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मठ के महंत रामसुंदर दास के सानिध्य में निकाली जाने वाली रथयात्रा को देखने के लिए पुरानी बस्ती के लोग उमड़ पड़ते हैं। यहां पुरी के मंदिर की तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराने और बीमार पड़ने के बाद पंचमी, नवमी, एकादशी पर काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है।