4 साल पहले एमसीआई से संबद्धता के पूर्व ही कॉलेज प्रबंधन ने मैनेजमेंट कोटा सीट पर 83 छात्रों को दाखिला दे दिया था। तब मैनेजमेंट कोटा के नाम से 40-45 लाख तक छात्रों से लिए गए थे। मगर, कॉलेज जीरो ईयर हो गया। मामला हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अंत में दाखिले रद्द कर दिए। छात्रों की फीस लौटाते-लौटाते कॉलेज की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। 2017 के बाद से कॉलेज को दाखिले की अनुमति नहीं मिली, जिसके बाद से कॉलेज घाटा में चला गया। कॉलेज में जीरो ईयर है। सूत्रों के मुताबिक तब कॉलेज प्रबंधन ने सरकार के सामने इसे अधिग्रहित करने की पेशकश की थी। सूत्रों के मुताबिक कॉलेज की बैंक से 143 करोड़ की लेनदारी है।
जानकारों के मुताबिक सरकार को एक कॉलेज को स्थापित करने में कम से कम 400 करोड़ का बजट बैठता है। अगर, वह रनिंग कॉलेज खरीदती है तो उसे 50 प्रतिशत यानी 175 से 200 करोड़ का खर्च आएगा। मैनपावर भी काफी हद तक मिल ही जाएंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री- भूपेश बघेल अपने दामाद का निजी मेडिकल कॉलेज बचाने के लिए उसे सरकारी कोष से खरीदने की कोशिश में हैं। वो भी एक ऐसा मेडिकल कॉलेज जिस पर धोखाधड़ी के आरोप एमसीआई द्वारा लगाए गए थे। कौन बिकाऊ है, कौन टिकाऊ है इसकी परिभाषा साफ है।