रायपुर. प्रदेश की
राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना को विलुप्ति से बचाने के लिए पिछले लगभग 15 सालों के दौरान वन विभाग ने 10 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च कर डाले। तमाम कमेटियां बना डाली और प्रस्ताव बना डाले, लेकिन इनका संरक्षण नहीं हो सका। जगदलपुर के वन विद्यालय में जिन छह पहाड़ी मैना को 1993 से रखा गया था, उनमें से पांच की मौत 2014 के पहले ही हो चुकी है। अब जंगलों में
पहाड़ी मैना की खोजबीन के लिए विभाग ने रिसर्च भी करा डाले, लेकिन फिलहाल कोई नतीजा सामने नहीं आया।
होता रहा खर्च
एक मैना के आहार के लिए 35 हजार रुपए प्रतिवर्ष खर्च होता रहा। इस बीच विभाग ने मैना के वंशवृद्धि और संरक्षण-संवर्धन के लिए एक कमेटी बनाई। इसी बीच मैना के पसंदीदा पेड़ बरगद, पीपल, सेम्हल आदि लगाने के नाम पर बस्तर के विभिन्न हिस्सों में पैसे खर्च किए गए।
ये इलाके चिन्हांकित
वन विभाग ने बस्तर के दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, नारायणपुर, जगदलपुर, कांगेर घाटी, गुप्तेश्वर, तिरिया, पुल्या और कुटरू के जंगलों को पहाड़ी मैना के सर्वे के लिए चिन्हांकित किया था। फिलहाल सर्वे रिपोर्ट में क्या है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
14 लाख में बना था पिंजरा
1993 में जगदलपुर के वनविद्यालय में 92 हजार रुपए की लागत से एक पिंजरा बनाया गया था। बाद मेंं इस पर 14 लाख रुपए और खर्च करके बड़ा किया गया। इसमेंं छह पहाड़ी मैना रखे गए। बारी-बारी से मैना की मौतें होती गईं। 2014 तक सिर्फ एक मैना बची।
अपर प्रधान वन संरक्षक एसके सिंह ने बताया कि कुछ माह पहले मेरे पास एक जांच रिपोर्ट आई है, लेकिन एक बार फिर देखना पड़ेगा कि उसमें क्या है। फिलहाल बता पाना मुश्किल है।
Hindi News / Raipur / 15 साल में करोड़ों खर्च फिर भी विलुप्त होने की कगार पर है राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना