गुहा कहती हैं, मनोवैज्ञानिक व साइबर एक्सपर्ट्स दोनों को ही आगे आकर कार्य करने की आवश्यकता है। लोगों को इस फोबिया से बचाना भी जरूरी है।
साइबर अपराध की शिकायत मात्र कर देना इसके प्रभावों से नहीं बचाता। ऑनलाइन निगरानी का एक अज्ञात भय हमेशा विक्टिम को सताता रहता है। हैकिंग या साइबर अपराध की घटना के बाद अकाउंट रिकवरी और सिक्योरिटी दोनों को पुख्ता करना जरूरी है अन्यथा अनिश्चितता व्यक्ति को फोबिया की ओर धकेल सकती है।
क्या है साइबर फोबिया?
इंटरनेट और कम्प्यूटर की दुनिया से भय लगना ही साइबर फोबिया है। कुछ ऐसे ही शब्द इंटरनेट फोबिया या हैकर फोबिया भी हैं, जहां लोग इंटरनेट इस्तेमाल करने और अपने डिवाइसेज या इंटरनेट से जुड़े अकाउंट्स के हैक हो जाने के भय से इनके इस्तेमाल से ही डरने लगते हैं। किसी तरह का साइबर संबंधी नुकसान जैसे मनी फ्रॉड, चैट्स या कॉल्स की जानकारी किसी और को पता चलना, सीक्रेट्स को लेकर किसी के द्वारा परेशान किया जाना, सेक्सटॉर्शन, मार्फिंग और भी कई इस तरह की गतिविधियों का शिकार होना। सोशल अकाउंट रिकवरी अथवा तकनीकी नॉलेज का न होना।
एडवर्टाइजमेंट एवं नोटिफिकेशन करते हैं परेशान
इंटरनेट या सोशल मीडिया पर बार बार ऐसा कंटेंट दिखना जो पुरानी घटना को याद दिलाता हो, और कई बार मिस-इनफॉर्मेशन के संपर्क में आ जाना व्यक्ति की मन स्थिति को और ज्यादा नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब यूजर को ऐसे कंटेंट ब्लॉक करना नहीं आता तब वह परेशान होकर इंटरनेट व मोबाइल से ही बचने लगता है।
समाधान
विक्टिम्स के साथ हुए अपराध को प्रॉपर्ली दर्ज किया जाए, समय रहते कार्रवाई की जानकारी उसे मिले। अपराधी पकड़े नहीं जाते ये बात उसके मन से निकालना साइबर अपराध के विक्टिम्स की मनोचिकित्सकों द्वारा काउंसलिंग की जाए किसी एक्सपर्ट से बात करवाकर विक्टिम के मन में डिवाइसेज के प्रति बैठा डर दूर किया जाए। साइबर अपराधों के प्रति जागरूकता पैदा करके। लोग पहले से ही ऐसे अपराधियों के प्रति मानसिक तैयार होंगे।
किसी के साथ ठगी हुई है तो रिश्तेदारों, दोस्तों और अन्य सभी का व्यवहार उसके प्रति सकारात्मक होना चाहिए।