health worker on strike : 5 साल पहले स्वस्थ्य विभाग, डीएमई और आयुष ने शासन को प्रस्ताव भेजा था की पगार बधाई जाए। शासन ने इसे आज तक मंजूर नहीं किया है। इसके अलावा 23 मांगे और है। नाराज कर्मचारी कामकाज थप कर अब हड़ताल पर चले गए है। इससे प्रदेश के 9 हजार से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्थाएं थप हो गई है। 1 हजार से ज्यादा एम्बुलेंस के पहिए भी थम गए है। अस्पतालों की ओपीडी से लेकर आईपीडी तक बुरा असर पड़ा है। ओपीडी में अस्वाथ्य के बिच डॉक्टर तो थे, लेकिन विभिन्न तरह की जांच करने वाले टेक्निसियस नहीं थे। ऐसे में न मरीजों की जांच हो सकी. न ही उन्हें इलाज मिल पाया सोमवार को होने वाले ज्यादातर ऑपरेशन टाल दिए गए। सरकारी एम्बुलेंस के नहीं चलने से 108 एक्सप्रेस पर दबाव बढ़ा। इस वजह से आई।
आंबेडकर अस्पताल में पत्रिका टीम आंबेडकर पहुंची तो ओपीडी के बाहर मरीजों की लंबी कतार नजर आई। जोड़ा से अपनी बेटी को इलाज के लिए लेकर पहुंचे सोनउ निषाद ने बताया की डॉक्टर के उन्हें ब्लड जांच के लिए कहा है। पैथोलॉजी में गए तो टेक्नीशियंस के नहीं होने से लौटा दिया गया। बेटी की तबियत ज्यादा ख़राब है। मज़बूरी में उन्हें प्राइवेट लैब में जांच करानी होगी। अगर पैसे होते तो वे सरकारी अस्पताल आते ही क्यों ?
डीकेएस अस्पताल डीकेएस अस्पताल में भी इलाज और जांच सुविधाएं प्रभावित रही। जांच के लिए मरीज इधर-उधर भटकते नजर आए। अभनपुर से आई अहिल्या सोनकर ने बताया की पति हफ्तेभर से बीमार है। गाँव में ही किसी ने बताया की डीकेएस अच्छा अस्पताल है तो वे उन्हें इलाज के लिए यहाँ लेकर आई। आने पर पता चला की स्वस्थ्य कर्मियों की हड़ताल है। इस वजह से इलाज में काफी देरी हो रही है। जांच में भी बड़ी परेशानी है।
कालीबाड़ी अस्पताल आंबेडकर अस्पताल के बाद कालीबाड़ी अस्पताल में भी बड़ी संख्या में बच्चों की डिलीवरी होती है। यहां पीडियाट्रिक में भर्ती एक बच्चे के पिता प्रियाराम ठाकुर ने बताया, नर्सों के नहीं होने से बचे की देखभाल प्रभावित हो रही है। इससे बेहतर होता की वे अपनी पत्नी और बच्चे को घर ले जाते। लेकिन, डॉक्टरों ने डिस्चार्ज करने से भी मन कर दिया है। किसी तरह की इमरजेंसी आई तो क्या होगा, उन्हें यही चिंता सत्ता रही है।
इधर शासन का दावा, कोई प्रभाव नहीं पड़ा रायपुर सीएमएचओ डॉ. मिथिलेश चौधरी के मुताबिक, पैरा मेडिकल स्टाफ के हड़ताल पर जाने की सुचना पहले ही मिल गई थी। ऐसे में सारी वैकल्पिक व्यवस्थाए कर ली गई थी। आरएचओ, द्वितीय एएलएम, जीएनएम जैसे स्टाफ हड़ताल पर नहीं थे। इसकी मदद से स्वास्थ्य सेवाओं का सुचारु रूप से संचालन किया गया। मरीजों के इलाज या जांच में कोईं असर नहीं पड़ा।