इस मामले में छत्तीसगढ़ का शीर्ष पर होना चिंताजनक माना जा रहा है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब यह पता चलता है कि इस रिपोर्ट में झुग्गियों का राष्ट्रीय औसत कुल घरों का केवल पांच प्रतिशत तक है। रिपोर्ट कहती है कि 2016 में घोषित सतत् विकास लक्ष्य 2030 को पाने के लिए स्लम को बदलना होगा। लोगों को पर्याप्त सुरक्षित, किफायती रहवास और मूलभूत सुविधाएं देने के लिए निरंतर काम करने वाला तंत्र , नीति और कार्यक्रम बनाना होगा।
एनएसएसओ कहता है कि किसी क्षेत्र में अस्थायी और कच्ची सामग्री से बने कम से कम 20 घरों का समूह जो एक दूसरे से सटे हुए हों और वहां घरों में शौचालय, पीने का साफ पानी और भूमिगत जलनिकाली प्रणाली नहीं हो स्लम है। जनगणना के लिए 60-70 घरों वाले एेसे ही क्षेत्र को स्लम कहा गया है। अब छत्तीसगढ़ के अधिकांश घर कच्ची सामग्री, खपरैल और मिट्टी से बने हैं। एेसे में यहां की स्लम आबादी बड़ी दिख रही है।
नदी-घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंद्योपाध्याय ने कहा कि रिपोर्ट में परिभाषा की समस्या के बावजूद सतत् विकास लक्ष्य में सबको सुरक्षित और सस्ता मकान दिलाना बड़ी चुनौती है। इस पर खरा उतरने के लिए स्पष्ट नीति, प्रशासनिक चुस्ती के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है। अभी के परिदृश्य में एेसा होता दिख नहीं रहा है। जब तक बदलाव में जनभागीदारी नहीं बढ़ाएंगे, नीति के अनुसार बजट आवंटन नहीं होगा तब तक हालात में बदलाव संभव नहीं दिखता।