script52 साल के मरीज की फट गई थी हार्ट की महाधमनी, डॉक्टरों ने सर्जरी कर दी नई जिंदगी | Heart's aorta had burst, 52 year old patient's life saved by surgery | Patrika News
रायपुर

52 साल के मरीज की फट गई थी हार्ट की महाधमनी, डॉक्टरों ने सर्जरी कर दी नई जिंदगी

Ambedkar Hospital: आंबेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में एक 52 वर्षीय व्यक्ति की दुर्लभ सर्जरी कर जान बचाई गई। मेडिकल भाषा में इस सर्जरी को एओर्टिक आर्च डिब्रांचिंग कहा जाता है। डॉक्टरों का दावा है कि सेंट्रल इंडिया में ऐसी पहली सर्जरी की गई है।

रायपुरMar 05, 2024 / 03:33 pm

Shrishti Singh

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Raipur News: आंबेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में एक 52 वर्षीय व्यक्ति की दुर्लभ सर्जरी कर जान बचाई गई। मेडिकल भाषा में इस सर्जरी को एओर्टिक आर्च डिब्रांचिंग कहा जाता है। डॉक्टरों का दावा है कि सेंट्रल इंडिया में ऐसी पहली सर्जरी की गई है। मरीज को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया है।
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मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत मरीज की सर्जरी के लिए 9 लाख रुपए मिले थे। यानी मरीज को जेब से एक रुपए खर्च नहीं करना पड़ा। कार्डियो थोरेसिक एंड वेस्कुलर सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. कृष्णकांत साहू व उनकी टीम ने मरीज की सर्जरी की। वहीं रेडियो डायग्नोसिस विभाग के एकमात्र न्यूरो रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सीडी साहू ने हार्ट की सर्जरी के बाद एंडो वैस्कुलर स्टेंटिंग की। कार्डियोलॉजी व रेडियोलॉजी विभाग में अभी तक एओर्टिक आर्च स्टेंटिंग के 10 से ज्यादा केस किए जा चुके हैं, लेकिन एओर्टिक आर्च डिब्रांडिंग सर्जरी पहली बार की गई।
डॉ. साहू ने बताया कि मरीज एन्यूरिज्मल एओर्टिक डायसेक्शन नामक बीमारी से पीड़ित था। दो माह से वह छाती व पीठ के असहनीय दर्द से परेशान था। डेढ़ माह पहले जांजगीर के व्यक्ति को छाती एवं पीठ में तेज दर्द हुआ एवं हल्की खांसी होने लगी। कोरबा मेडिकल कॉलेज में जाने पर उन्हें आंबेडकर के चेस्ट विभाग में रैफर किया गया। छाती का सीटी एंजियोग्राम कराने पर पता चला कि छाती के अंदर महाधमनी गुब्बारा जैसे फूल गया है एवं उसके आंतरिक दीवार में छेद हो गया है। इससे महाधमनी के आंतरिक और बाह्य परत के बीच में खून भर गया है। इसे मेडिकल भाषा में एओर्टिक एन्युरिज्मल डायसेक्शन कहा जाता है।
कई हार्ट सर्जन से ली रायमहाधमनी ऐसी जगह से फटी थी कि वहां पर स्टेंट नहीं डाला जा सकता था। महाधमनी जहां पर फटी थी, वहां पर मस्तिष्क और हाथ को रक्त प्रवाह करने वाली मुख्य धमनी, जिसको लेफ्ट कैरोटिड आर्टरी एवं लेफ्ट सबक्लेवियन आर्टरी कहा जाता है, में स्थित होती है। डॉ. साहू ने बताया कि ऐसे में स्टेंट डालते ही मरीज को लकवा हो जाता इसलिए मरीज को हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग भेज दिया गया। सीटी एंजियोग्राम से पता चला कि डिब्रांचिंग सर्जरी करनी पड़ेगी जो कि बहुत ही जटिल है एवं मरीज के जान को बहुत अधिक खतरा हो सकता है।
चूंकि यह ऑपरेशन अभी तक इस संस्थान में नहीं किया गया है इसलिए दूसरे बड़े संस्थानों के वैस्कुलर सर्जन से संपर्क करके ऑपरेशन की योजना बनाई गई। डॉ. साहू ने 2011 में एसएमएस अस्पताल जयपुर से एमसीएच किया था। वहां अपने एचओडी से संपर्क किया तो वहां भी इस तरह की सर्जरी नहीं हुई है।
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ऐसी की गई दुर्लभ सर्जरीइस ऑपरेशन में दाएं कैरोटिड आर्टरी (जिसको सामान्य भाषा में गले की दायीं धमनी कहते है) को काटकर एवं विशेष प्रकार के ग्राफ्ट (डेकॉन ग्राफ्ट) से बायीं गले की धमनी (लेफ्ट कैरोटिड आर्टरी) से जोड़ा गया। बाएं गले की धमनी को बाएं हाथ की धमनी से जोड़ा गया। इस प्रकार पूरे मस्तिष्क एवं बाएं हाथ को दाएं गले की नस से ही खून की सप्लाई मिलती है। इस ऑपरेशन में जरा सा भी चूक होने पर मरीज हमेशा के लिए बेहोश, लकवाग्रस्त भी हो सकता था या फिर बायां हाथ काला पड़ सकता था अथवा आवाज जा सकती थी।
सर्जरी सफल रहने से मरीज की जान बच गई। 15 दिनों बाद रेडियोलॉजी के डॉ. साहू ने पैर की नस के रास्ते स्टेंट लगाकर उसके महाधमनी में आए छेद को बंद कर दिया।

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